विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीगोपियों की चाहतशास्त्र में लिखा है- जातिपरिवृत्तिः प्रकृत्यापूरात्- हमने ध्यान करते-करते पुरुष को स्त्री-सरीखा देखा है, ध्यान करते-करते बुड्ढे को जवान होते देखा है। भीतर का जो मन है, वह जब सूक्ष्म शरीर बदल गया और रासलीला हो गया, वह आनन्द से, ज्ञान से, सत्ता से तृप्त हो गया, वह श्रीकृष्ण की वंशीध्वनि और उनके रूप-सौन्दर्य और उनकी रूप-माधुरी से परिपूर्ण हो गया, वह सूक्ष्म शरीर जब तृप्त हो गया, तब स्थूल शरीर तृप्त हो जाय इसमें आश्चर्य क्या है? गाय बदल जाय, पेड़ बदल जाय, चिड़िया बदल जाय, हरिणी पशु बदल जाय; दूसरे शब्दों में जो प्रमेय के धर्म में परिवर्तन कर दे, तो आश्चर्य ही क्या है! तो आओ, गोपियों ने कहा कि न हम लक्ष्मी को दोष लगाते हैं बाबा! न दुनिया में किसी सती-सावित्री को दोष लगाते हैं; परंतु हमने तो तुम्हारी वंशीध्वनि सुनी है। क्या कभी किसी सती-सावित्री ने, जिनकी बड़ी महिमा है सृष्टि में, वंशी-ध्वनि सुनी थी? दोष तो है सारा तुम्हारी वंशीध्वनि का। तुमने अपनी वंशी के द्वारा प्रणय-निमंत्रण देकर हमको अपने पास बुला लिया और अब कहते हो कि लौट जाओ। जो तुम्हारे पास आकर लौट जाती होंगी वे स्त्री कोई दूसरी होंगी। ये गोपी हैं गोपी, ये लौटना नहीं जानती हैं। अब इसका नतीजा क्या होगा- मालूम है? गोपियों के अंदर दैन्य आ गया, शरणागति का भाव आ गया। उनके मन में आया कि हमारे प्रयत्न से कुछ नहीं होगा, हमारे साधन से कुछ नहीं होगा, इनकी कृपा से ही सब कुछ होगा। अब मर्यादा नहीं, पुष्टि। श्रीरामानुज-सम्प्रदाय में बोलते हैं- एक क्रियायोग और एक प्रपत्ति। क्रियायोग माने दिनभर पूजा करते हैं, न्यास आदि करते हैं, चन्दन लगाते हैं, माला पहनाते हैं, आरती करते हैं, वारम्बार स्नान करते हैं- यह सब क्रियायोग है। मूर्ति में न्यास करते हैं, अपने शरीर में भी न्यास करते हैं। और भगवान् मिलते हैं कब? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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