विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीगोपियों की चाहतभगवान के सामने चाहे नाचें, चाहे गावें, चाहे तान तोड़े, जैसे मौज हो वैसे रहें, पर भगवान के सामने रहें। सब धर्मों का फल यह है कि भगवान के चरणों में भक्ति हो, भगवान के चरणों में प्रीति बढ़े।
एक आदमी ने धर्म तो खूब किया- खूब दान किया, कृच्छ्र- चांद्रायणादि बड़े-बड़े व्रत किये और खूब होम किए, यज्ञ किये, लेकिन भगवान की कथा नहीं सुनी और भगवान के चरणों में प्रीति नहीं हुई, तो वह धर्म क्या है? कि- ‘श्रम एव हि केवलम्’ वह केवल श्रम ही है। उसने केवल मेहनत- मजदूरी की, क्योंकि जो रस जीवन में आना चाहिए था वह रस तो जीवन में आया नहीं। इसी से श्रीमद्भागवत में बताया कि सब धर्मों से बड़ा धर्म क्या है कि-
इस मनुष्य-जीवन में, इस लोक में इतना ही धर्म है कि यह जीव भगवान के सामने आरती की लौ की तरह भगवान के चरणों में निछावर हो जाय। बड़प्पन बढ़ने में जीवन की सफलता नहीं; अभिमान पर तो कभी न कभी चोट लगेगी ही, चाहे मूढ़तावश अभिमान हो, चाहे राग का अभिमान हो, चाहे धर्म का अभिमान हो, चाहे योग का या ज्ञान का अभिमान हो। संसार की प्रकृति को बदल देने का सामर्थ्य भगवान के रूप में, भगवान की वंशीध्वनि में- त्रैलोक्यसौभगमिदं च निरीक्ष्य रूपं यद् गोद्विजद्रुममृगाः पुलकान्यबिभ्रन् । ऐसा वर्णन मिलता है और हमने देखा भी है कि जो लोग भगवान का ध्यान करते हैं और यदि उनका ठीक-ठीक ध्यान लग जाता है, तो उनका शरीर बदल जाता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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