विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीगोपियों में दास्य का हेतु-3पुराने जमाने में शब्दों के निर्माण की एक यह भी परिपाटी थी। शक्र, रुद्र, परमेष्ठी, ब्रह्मा, ये सब बड़े बूढ़े देवता, समाधि लगाने वाला प्रलय का देवता, सबका दादा-परदादा ब्रह्मा- ये जब तुम्हारी वंशी सुनकर मोहित हो जाते हैं; बड़े-बड़े ऋषि, बड़े-बड़े महात्मा, सनकादि सिद्ध जब तुम्हारी वंशी सुनकर मोहित हो गये, तब हमारी क्या बात? समाधिभंगाय कदानु मे भवेत- एक दिन सनकादि बैठे बैठे ध्यान कर रहे थे तो बीच-बीच में आँख खोलकर देख लें और फिर ध्यान करने बैठ जायँ। नारदजी बहुत देर से यह देख रहे थे, तो आये, और बोले कि क्यों महात्माओं। आज समाधि आपकी कुछ विचित्र ही लग रही है। वारम्वार आँख खोलकर देखते हो, फिर आँख बन्द करते हो, आज आपकी समसाधि कैसी लग रही है? तो बोले- बाबा, हमको आज प्रतीक्षा है, किसी से मिलने की इच्छा है। श्रीकृष्ण की वंशी-ध्वनि हमको बरबस अपनी ओर खींच रही है। जिसके मन में कहीं जाने की इच्छा होगी, किसी से मिलने की इच्छा होगी, वह आसन बाँधकर नहीं बैठ सकता : प्रयत्न शैथिल्य के बिना आसन जमता ही नहीं। यह योगशास्त्र का नियम है कि जब आदमी यह सोचेगा कि अब हमको कहीं नहीं जाना है, चित्त की समाधि लगाना है, चाहे दिन भर लग जाय, तो आसन स्थिर हो जायेगा वरना यदि वह सोचेगा कि घण्टेभर बाद बाजार में जाना है, तो आसन जमेगा नहीं। तो यह वंशी-ध्वनि जिसमें इन्द्र मोहे, ब्रह्म, मोहे, शंकर मोहे, सनकादि मोहे और नारद मोहे, सब जिसमें मोहित हो गये, बड़े-बड़े ऋषि, महर्षि, महात्मा पुरुष मोहित हो गये अब उससे कोई स्त्री मोहित हो जाय, तो इसमें क्या आश्चर्य है! देव्यो विमानगतयः स्मरनुन्नासारा, भ्रश्यत् प्रसूनकबरा मुमुहुर्विनीव्यः । तो पुरुषों की तो यह हालत है। अब महाराज, देवियों की सुनो- ‘विमानगतयः’ का दो अर्थ है। एक तो विमान पर चढ़कर आना; और दूसरा अर्थ है कि घर में तो देवियाँ रूठी हुई थीं, और देवताजी मना रहे थे; इंद्र, वरुण, कुबेर, अग्नि, वायु, इनकी घरवालियाँ जो हैं वे एक ही दिन सलाह करके सबकी सब रूठ गयीं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
प्रवचन संख्या | विषय का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज