विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीगोपियों में दास्य का हेतु-2तुम्हारी आँखों में जैसा अपनपव मैं देखता हूँ, वैसा तुम मेरी आँख में देखती हो कि नहीं देखती हो? आँख में अपनपव देखने से समझो कि श्यामसुन्दर राधारानी के इतने निकट हैं कि उनकी आँख में अपनी परछाईं दिख रही हैं; अब वे कहते हैं कि तुम भी हमारी आँख में अपनी परछाईं देखती हो कि नहीं? आँख में परछाईं देख लेना, यह कितना पास होना है।
प्रेम के मार्ग में पहला कदम चक्षुराग-नैन प्रीति है। आप कभी भगवान का ध्यान करें, तो यदि केवल आँख का ध्यान करें, आँख से आँख मिला दें, भगवान की आँख में आप अपनी परछाईं देखें और भगवान आपकी आँख में अपनी परछाईं देखें तो आपका ध्यान टूटने का नाम नहीं लेगा। यह वीक्षण है। इसके बाद मन में संकल्प उठता है, संकल्प के बाद लालसा आती है, फिर व्याकुलता होती है, फिर मिलने का प्रयत्न होता है- इसमें अनेक भूमिका आती हैं। हे वीक्ष्य वीक्षितुं योग्यः वीक्ष्यः तत् संबोधने हे वीक्ष्य । अरे, देखने लायक दुनिया में कोई है तो श्रीकृष्ण ही हैं। इसलिए उसको संबोधित करती हुई गोपी कहती है- हे वीक्ष्य! |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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