विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीगोपियों में दास्य का उदयहमको परायी मत समझो, अपनी समझो, और दूसरी बात है गति की- जैसे हम चलकर तुम्हारे पास आयी हैं वैसे प्रसीद, माने तुम यहाँ खड़े हो त्रिभंगललित भाव से, वहाँ अब खड़े मत रहो और चलकर एक-एक गोपी के पास जाओ, उनसे मिलो। अब तीसरी बात है हमारे अवसादन की- माने हमारे मन में जो दुःख है उसको भगा दो। इस प्रकार तन्नः प्रसीद-प्रसीद का अर्थ है कि परायपन छोड़ दो; और जैसे हम आयी हैं तुम्हारे पास वैसे तुम भी ललकके- जैसे मक्खन खाने के लिए मचलते हो वैसे मचल के, लालसायुक्त होकर हमारी ओर आओ; और हमारे दुःख को मिटा दो, ये तीन काम करो तो हम समझेंगी कि तुम प्रसन्न हो गये। संबधोन है, वृजिनार्दन। कृष्ण ने कहा-नहीं बाबा, अभी तुम्हारे अन्दर वृजिन है, तुम हमसे नहीं मिल सकती। जब तक लोहे में जंग लगा होता है, मैल लगा होता है, तब तक वह शुद्धभाव से चुम्बक की ओर नहीं खिंचता; जंग छुड़ाओ, मैल छुड़ाओ, कुछ संस्कार शेष है, कुछ वासना शेष है। तो बोली कि तुम तो वृजिनार्दन हो- वृजिन माने पाप, अपराध, दुःख, तो अगर हमारे अंदर पाप है तो तुम छुड़ा दो, हमसे कोई अपराध हुआ है तो उसे मिटा दो। जैसे पत्नी से कोई गलती हो जाय, तो पत्नी की ओर से पति लोग माफी माँग लेते हैं अथवा जैसे पत्नी से वस्त्र पहनने में या श्रृंगार करने में कोई गलती हो गयी हो, तो पति उसको सुधार लेता है; उसी प्रकार तुमसे मिलने में अगर हमारे अंदर कोई योग्यता की कमी है, तो उस योग्यता की कमी को तुम खुद दूर कर लो क्योंकि तुम वृजिनार्दन हो। असल में गोपी के दर कोई अयोग्यता नहीं है; और भगवान परीक्षा भी नहीं ले रहे हैं। ईश्वर किसी की परीक्षा नहीं लेता। यह जो लोगों का ख्याल है कि ईश्वर जो हमको दुःख दे रहा है वह हमारी परीक्षा ले रहा है, ठीक नहीं है। क्या ईश्वर को यह पता नहीं है कि इसमें पास होंगे कि फेल होंगे। परीक्षा तो वह आदमी लेता है जिसको आगे का पता नहीं। ईश्वर को तो तुम्हारे पास फेल का सब पता है; परदा कहाँ भर्तासौं जिन देखे सारे अंग- ईश्वर से क्या परदा है? तो बोले कि अगर ईश्वर परीक्षा नहीं लेता है तो दुःख काहे को देता है? तो दुःख देता है तुम्हारी सहनशक्ति बढ़ाने के लिए। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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