विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीगोपियों का समर्पण-पक्षचार प्रकार से इस वाक्य का अर्थ श्रीधरस्वामी ने लिखा है। बढ़िया गंभीर प्रश्न है, यह! आपको पहले गंभीर सुनावेंगे। गोपी कहती हैं कि पति की सेवा इसलिए है, पुत्र की सुहृद् की सेवा इसलिए कि अपने धर्म का पालन करने से अंतःकरण शुद्ध होवे और शुद्ध अंतःकरण में परमात्मा की प्रीति उदय हो, परमात्मा का ज्ञान उदय हो, परमात्मा का साक्षात्कार हो। धर्म स्वतंत्र प्रमाण नहीं है, सत्य वस्तु के साक्षात्कार में धर्म प्रमाण नहीं है। एक अंधा था। उसने दान किया कि इससे हमको जगन्नाथ जी का दर्शन होना चाहिए। दान तो हुआ हाथ से परंतु दान के फलस्वरूप जगन्नाथ जी का दर्शन नहीं होगा, दान के फलस्वरूप उसको आँख मिलेगी; और आँख से वह जगन्नाथ जी का दर्शन करे। जगन्नाथ जी तो पहले मौजूद हैं, वे त पहले से बैठे हैं, उनको देखने के लिए चाहिए आंख। कर्म से वस्तु नहीं दिखती, ज्ञान से वस्तु दिखती है। तो धर्म-कर्म क्यों? कि जिससे आँख मिले, और आँख से शुद्ध परमात्मा का दर्शन हो, माने ज्ञान प्राप्त होवे। विविदशा वाक्य जो है ना-
एक धर्म है और एक परमधर्म है। दान, व्रत, तपस्या ये सब धर्म हैं; और अपने दिल में बैठा हुआ जो दिलवर है उसके प्रति जो अनुराग है वह परमधर्म है। ईश्वर ही दिलवर है। धर्म का फल है परमधर्म। जब हमको परमधर्म मिल गया तो पुनः हमको धर्म करने के क्यों कहते हो? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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