विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीप्रेम में सूखी जा रहीं गोपियाँ आखिर बोलींबोले- क्यों ऐसा नहीं बोल सकते? ‘सन्त्यज्य सर्वविषयांस्तव पादमूलम् भक्ताः’ अरे, हम तो सारे बन्धन काटकर तुम्हारे चरण के तलवे में सट गयी हैं- ‘विशेषवन्ति इति विषयाः’ विषय उनको कहते हैं जो बाँधे, बन्धन की रस्सी का नाम विषय है। दुनिया में बन्धन की रस्सी बहुत होती हैं। ऐक आदमी को जाना था गंगोत्री। हमने कहा- भाई, तुमको पान खाने की आदत है, वहाँ तो पान नहीं मिलेगा। बोला- बाबा, तब हम नहीं जाएंगे। एक सच्ची घटना आपको सुनाता हूँ। एक ब्रह्मचारी थे। पचास वर्ष की उनकी उम्र हो गयी थी, स्वयं-पाकी थे। एक दिन उन्होंने संकल्प किया कि अब संन्यास ग्रहण कर लें। तो उनके घर के लोग श्री उड़ियाबाबाजी महाराज के पास आये और कहा कि ब्रह्मचारीजी संन्यास लेना चाहते हैं। फिर तो हमारा-उनका मिलना-जुलना सब कुछ कट जाएगा। कान्यकुब्ज ब्राह्मण थे दण्डीस्वामी हो जायें तो बड़े कड़े। तो बाबा जब स्नान करने के गये तो वहीं ब्रह्मचारी जी की कुटिया थी छप्पर की जंगल में, उनकी कुटिया में चले गये तो वहीं ब्रह्मचारी जी की कुटिया थी छप्पर की जंगल में, उनकी कुटिया में चले गये। ब्रह्मचारी जी झट भोजन से उठे और प्रणाम किया, बैठाया, बोले- कैसे पधारे? तो बाबा ने कहा कि सुना है तुम संन्यास लेने वाले हो? बोले- हमाराज, इच्छा तो है, ले लें? आपकी क्या आज्ञा हैं? बाबा ने कहा- अरे, पचास वर्ष से तुम अपनी हाथ की रसोई बनाकर खाते आये हो। इतना मीठा भोजन अब तुमको खाने को कहाँ मिलेगा। क्योंकि तब अपने हाथ से बना खाना नहीं सकोगे और पता नहीं किसके-किसके हाथ का खाना पड़ेगा। बोले- हाँ, यह तो हमको ख्याल ही नहीं था, महाराज! अब हम संन्यास नहीं लेंगे, हम तो दूसरे के हाथ का खाना नहीं खा सकते। तो जिनको महाराज कोई अपनी आदत होती है, अपनी बुद्धि, अपना अभ्यास वह दूसरे के साथ जुड़े भी तो क्या करेगा? अपनी आदत पूरी करेगा, अपनी बुद्ध पूरी करेगा, अपना अभ्यास पूरा करेगा और प्रेम तो महाराज सामने वाले की आदत, सामने वाली की बुद्धी, सामने वाले का अभ्यास पूरा करने के लिए होता है। गोपियों ने साफ कह दिया- ‘संत्यज्य सर्वविषयान्’ हम अपने सारे बंधन, सारे विषयभोग, सारे लोक-परलोक, छोड़कर तब तुम्हारे पास आयी हैं। हम अपने अहं को अपने अहं को दबाने के लिए आयी हैं। आपको ये कठोर वचन शोभा नहीं देते। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
प्रवचन संख्या | विषय का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज