विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीश्रीकृष्ण का अमिय-गरल-वर्षणमैंने आक्षेप किया, आप तो प्रकृति की शोभा देखने के लिए, सौन्दर्य देखने-निरीक्षण करने के लिए यहाँ पधारी थीं तो ‘तद् यात’ अब लौट जाओ-
तद् यात मा चिरं जल्दी जाओ देर मत करो। कहाँ जायँ? बोले-गोष्ठं गोष्ठ में जाओ। वहाँ जाकर क्या करें? पतीन् शुश्रूषध्वं- अपने पतियों की सेवा करो। बोली- हम तो महाराज उनको छोड़कर आयी हैं। हे नन्दन, हे श्याम सुन्दर, ते दास्याः हम तो तुम्हारी दासी हैं, और उनको छोड़कर आयी हैं। बोले- राम-राम-राम, गोपियों! ऐसी अधर्म की बात अपनी जबान पर कभी नहीं लाना। पतियों को छोड़कर आयी हैं? सीताराम-सीताराम, नारायण का नाम लो। ‘शुश्रूषध्वं पतीन्’ जाओ पतियों की सेवा करो। बोलीं- हमारी तो रुचि बिलकुल नहीं है। तो कहा- सती ‘शुश्रूषध्वं’ अरे तुम्हारे गाँव में कोई सती है कि नहीं? इह सन्तो न वासन्ति सतो वा स्नान वर्तते। क्या तुम्हारे गाँव में कोई सती नहीं है? अरे, सती हो तो जाओ, उसके चरण की धूलि लेकर अपने शिर पर लगाओ कि हे सती माता। हमसे गलती हो गयी, हम अपने पतियों को छोड़कर उस नन्द के छोरा के पास बाँसुरी सुनने के लिए चली गयीं जाओ, जाओ, सतियों के चरणों की धूल लेकर-लेकर अपने शिर पर लगाओ। उनकी सेवा-शुश्रूषा करो कि तुम्हारे हृदय के पाप मिट जायँ। पतियों के धर्म को छोड़कर यहाँ आयी हो? राम-राम, भ्रष्ट हो जाओगी, नरक में जाओगी। राम-राम, लौट जाओ- शुश्रूषध्वं पतीत् सतीः।
अरे, तुम्हारे हृदय में दया-ममता नहीं है, अरी ओर कठोर गोपियो। ‘क्रन्दन्ति वत्सा बालाश्च’ उधर गाय के बछड़े पाँव में बँधे-बँधे डकरा रहे हैं, बिना दूध के बच्चे रो रहे हैं। जाओ-जाओ! बछड़ों को छोड़ो, गाय दुहो, बच्चों को दूध पिलाओ, तुम यहाँ क्या करने आयी हो? यहाँ अपने धर्म, कर्म, कर्तव्य छोड़कर, घर-द्वार छोड़कर यहाँ आयी हो? इसी को विषवर्षण कहते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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