विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीश्रीकृष्ण का अमिय-गरल-वर्षणअब आपको फिर एक बार लौटा देते हैं। भगवान जानते हैं कि गोपियों में दो तरह की थीं। दो ही नहीं, बहुत तरह की थीं- एक तो जानी-पहचानी, गोलोक से आयी हुई और कृष्ण की नस-नस की पहचानने वाली, उनके रोम-रोम से वाकिफ। और जो नयी-नयी आयी थीं, कात्यायनी की पूजा करके, अज्ञातयौवन, मुग्धा, बड़ी भोली। इन विचारियों के आँख से आँसू गिरने लगा। जो समझदार थीं वे मुस्कुराने लगीं। इसमें क्या बात है? इसमें बात यह है कि स्वागतं भो महाभागाः गोपियों। तुम सचमुच महाभाग्यवती हो, सौभाग्यवती हो, आज तुम्हारा सौभाग्य जग गया। तुम भले आयीं, मैंने बाँसुरी बजायी, कितना तुम्हारा प्रेम है। धन्य हो। मेरी आवाज धन्य हो, बाँसुरी की आवाज सुनते ही तुम आ गयीं। सचमुच हम तुम्हारे प्रेम के ऋणी हैं- प्रियं किं करवाणिवः- अब आप बताओ तुम्हारा क्या प्रिय है? पाँव दबा दें? कहो तो तुम्हारा बाल श्रृंगार कर दें? कहो तुम्हारा अञ्जन ठीक लगा दें? कहो- वेणी गूँथ दें? कहो- कपड़े ठीक कर दें? अच्छा, तुम जो राग कहो, वह राग गाकर सुना दें? जिस ताल पर कहो नाच दें? बोलो- अरे! बाबा जो कहो सब कर दें। मन तुम्हारा और तन हमारा, जो तुम्हारे मन में आवे सो हमारा तन वही नाच नाचने के लिए तैयार है। अब जो गोपी मुस्कुरा रही थी, वह बोली कि ठहरो-ठहरो, ऐसी बात मत करो। हम लोग यहाँ देर तक रह जाएँ और व्रज में कोई नयी घटना घट जाये- तुम्हारे सिवाय हमारे भी घर है, द्वार है, पूज्य हैं, नाते-रिश्तेदार हैं। हम सायंकार व्रज से बाहर हो जायँ तो वहाँ अनर्थ हो जाए। तुम हमको यहाँ रोकते हो, बात नहीं करते। तो कृष्ण भगवान बोलें- व्रजस्यानाममयं कच्चित् ब्रूतागमनकारणम्- क्या तुम कल्पना करती हो, व्रज का कोई अमंगल हो सकता है। मैं मौजूद हूँ, मेरे रहते क्या व्रज में किसी को कोई कष्ट हो सकता है। फिकर मत करो, बिलकुल भूल जाओ-जाओ, नाचो, गाओ, बजाओ, हमसे खेलो- व्रजस्यानामयं कच्चित्। गोपी ने मुँह फेर लिया। तो कृष्ण बोले- ब्रूत- अरे गोपियों! एक बार तो अपने मुँह से फुल झरने दो। ब्रूता- हम तुम्हारे प्यारे हुए और तुम हमारी प्रेयसी, आओ बातचीत करें। गीत-गोविन्द में आया है- एक बार राधारानी रूठीं, और श्रीकृष्ण लगे मनाने। तो बोले कि तुमको हमारे ऊपर गुस्सा ही आया है तो गुस्सा आने पर मालूम है कि क्या किया जाता है? बोले- आदमी को जिस पर गुस्सा आता है जिसको बाँधता है- घटै भुजबन्धनम्। अरे, बाँधो तो! हमको बाँध लो। और फिर जिसके ऊपर गुस्सा आता है, आदमी उसको काटता है- रदखण्डनम्। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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