विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीजो जैसिह तैसेहि उठ धायीं-2एक ने पूछा- जब माला फेरने बैठते हैं तब कृष्ण का ध्यान नहीं आता। तब किसका आता है? कहा- बेटे का आता है। वाह भाई वाह! कृष्ण का नहीं आता है, बेटे का ध्यान आता है, क्यों? तो देखो, दुनिया में जिससे प्रेम होता है, जिससे संबंध होता है, उसी का ध्यान आता है, यह नियम है। तुम्हारा कृष्ण से कोई संबंध नहीं है, उससे प्रेम नहीं है, पुत्र से प्रेम है, संबंध है इसलिए हाथ में माला होती है कृष्ण की ध्यान आता है बेटे का। देखो आत्मा, ब्रह्म तो संबंधरहित है परंतु कृष्ण की जो प्रियता है वह सम्बन्धयुक्त है। तुम्हारे मन में कृष्ण के संबंध का बन्धन है कि नहीं? अरे, तुम्हारे सैकड़ों रिश्तेदार, नातेदार हैं, उनमें कोई एकाध रिश्ता कृष्ण से भी तो जोड़ो- तात मात गुरु भ्रात सखा तू सब विधि हितु मेरो, देखो, जब तक यह शरीर है और जब तक दिल है, इसको मेरा करके रखोगे तो रोओगे और इसको तेरा करके छोड़ दो तो सुखी रहोगे। भक्ति का यही रहस्य है। मैंको काटता है ज्ञान और मेरे को काटती है भक्ति। दुनिया में जो मेरापन है- यह मेरा, यह मेरा, वह मेरा, इसका जगह भक्ति बताती है- मेरा ईश्वर; ईश्वर के सिवाय मेरा और कोई नहीं है, भगवान् मेरा, नारायण मेरा, लो, बन गयी बात। यही भक्ति है। ईश्वर के प्रति अतिशय ममत्व का नाम भक्ति है- सम्यग् मश्रिणित स्वान्तो ममात्वातिशयान्तकः । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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