विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीजो जैसिह तैसेहि उठ धायीं-2विघ्न भी दो तरह का होता है। एक तो बाहर की वस्तुओं से आकर और दूसरा अपने मन से आकर। काम करने में जो ढिलाई होती है उसमें तो विघ्न अपने मन में- से आते हैं कि इसमें यह डर है, यह डर है अब डर के मारे पाँव ही न रखें धरती पर। एक आदमी ने कहा महाराज; छह महीने के बाद ऐसा हो जावेगा तो? एक आदमी ने कहा-अगर पानी न बरसा तो? मैंने कहा आज ही भूकम्प आ जाए तो? नारायण कौन सा इन्तजाम करोगे? आदमी को अपने दिमाग को खराब नहीं करना चाहिए। एक ने आज ही कहा कि पूना में तो जगह मिली नहीं अब नासिक में तलाश करते हैं, बम्बई से तो भागना ही पड़ेगा, पानी की समस्या है बम्बई में। अरे नारायण, आप पानी का खर्च ज्यादा मत करना सो तो ठीक है, लेकिन बिलकुल बेफिकर रहना, जाना-वाना कहीं नहीं पड़ेगा हमारी जिम्मेदारी है। संसार में कितनी बार अवर्षण होता है, अपने मन को क्यों कमज़ोर बनाना? यह वर्षा व्यष्टि प्रारब्ध से नहीं होती, उसमें एक आदमी का प्रारब्ध नहीं होता, उसमें सबका प्रारब्ध मिला होता है। वर्षा समष्टि प्रारब्ध से होती है। विघ्न की कल्पना, जो चीजों से विघ्न आता है, जैसे साँप आ गया, गर्म हवा चलने लगी, ये सब निर्जीव विघ्न है; लेकिन जब सजीव से विघ्न आता है; जैसे घर के लोग रोते हैं उस समय विघ्न का पता चलता है। आप समझो कि आप कहीं जा रहे हैं हमने आपको रोकने के लिए आगे हाथ कर दिया तो आप और जोर लगाकर हमारा हाथ हटावेंगे, आगे बढ़ जाएंगें। अच्छा, हम ऐसे हाथ न करें, तो आप मामूली गति से चलेंगे लेकिन यदि हम हाथ से रोक कर दें तो जोर लगाकर निकलेंगे। इसका अर्थ हुआ कि आपके भीतर प्रेम में जो शक्ति छिपी हुई है उसको जाहिर करने के लिए, प्रकट करने के लिए, सोती हुई शक्ति को जगाने के लिए, विघ्न आया। तो गोपियाँ बी जब श्रीकृष्ण के पास चलीं तो उनको भी विघ्न आया। यह कोई उनके पाप का फल नहीं है, यह तो उनके पुण्य का फल है; अरे पुण्य का नहीं, श्रीकृष्ण की कृपा का फल है। उनके हृदय में जो प्रेम है, उसको आप कैसे जानेंगे कि कितना प्रेम था। इसलिए थोड़ी रुकावट पड़ी। बड़े वेग से गोपी चलें। महाराज, जब मोटर को ऊपर चढ़ना होता है और चढ़ नही पाती है- ऊँचाई रोकती है- तो गीयर बदल देते हैं और जोर से चलाते हैं। इसी प्रकार रूकावट पड़ने पर यह प्रेम जोर से चलाने का है, कम करने का नहीं है- ता वार्यमाणाःपतिभिः पितृभिर्भातृवन्धुभिः । ता वार्यमाणाः पतिभिः- पतियों के द्वारा गोपियों का वारण किया गया। पति ने दो चीज से वारण किया। एक धर्म से और एक प्रेम से। प्रेम से हाथ पकड़ लिया और बोले हमको छोड़करर जाना तुम्हारा धर्म नहीं है। यह नहीं कि कृष्ण के पास जाना धर्म नहीं है, बल्कि बात यह कही कि हमको छोड़करर जाना धर्म नहीं है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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