विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीश्रीकृष्ण के प्रति गोपियों का अभिसारजिज्ञासु सब एक जिज्ञासा करते थे, लेकिन जब संन्यास लेने का मौका आया तो अकेले-अकेले भगे और आपको मालूम है कि बिना नंगा हुए संन्यास भी नहीं होता है। बिना निवारण हुए द्रष्टा का स्वरूप में अवस्थान नहीं होता, बिना निवारण हुए स्वर्ग सुख का आस्वादन नहीं होता, बिना निवारण हुए भगवान् की लीला में प्रवेश नहीं होता, बिना निवारण हुए ब्रह्मज्ञान नहीं होता, बिना निवारण हुए रासलीला नहीं मिलती, परदा तो हटाना ही पड़ेगा। शास्त्रीय पद्धति यह है कि गुरु एक व्यक्ति को देखे कि इसने पूर्वजन्मों में किस मंत्र का जाप किया है, किस इष्ट का ध्यान किया है और वह कहाँ तक पहुँचा हुआ है, फिर वह गुरु उसके आगे उसका संबंध जोड़ दे, तब साधक आगे बढ़ता है। सोलहो धान बाईस पसेरी नहीं होता। सबके समझ में वेदान्त नहीं आता। हजार कोशिश करो सबके हृदय में रस का उल्लास नहीं होता। सबको समाधि नहीं लगती, सब धर्मात्मा नहीं होते क्योंकि सबका चित्त असल में अलग-अलग होता है। यशोदा मैया को कोई समझावे कि भक्ति में सबसे अच्छा श्रृंगार रस का मधुर रस का भाव है, तो मैया मारेगी और गोपियों से कोई कहे कि वात्सल्य रस बड़ा श्रेष्ठ है तो गोपी कहेगी चल हट हमारे सामने बात नहीं करना। सबकी स्थिति अलग-अलग होती है, सबके चित्त की गति अलग-अलग होती है। अलगाव में तो ये जीव बहता आया ही है। जिन लोगों ने आज तक सबको एक में मिलाने की कोशिश की है, किसी को सफलता हुई नहीं है। समन्वय की बात करते हैं लोग परंतु क्या समन्वय होगा? गौतम और कणाद् आपस में नहीं मिले, गौतम और कपिल आपस में नहीं मिले, कपिल पतंजलि आपस में नहीं मिले, पतंजलि और जैमिनि, फिर जैमिनि और व्यास आपस में नहीं मिले। और हमलोग क्या कहते हैं कि सब आपस में मिले हुए हैं। ये नीचे हैं, ये ऊँचे हैं। उनसे पूछो कि तुम नीचे हो? वह भला मानेंगे? तो समन्वय तो दूसरे लोग लादते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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