विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीश्रीकृष्ण के प्रति गोपियों का अभिसारचलो यमुना के किनारे, अब हमारा मन शहर में व्याख्यान देने का नहीं है। चाँदनी रात महाराज। ग्यारह बज रहे थे, हजारों श्रोताओं को लेकर शहर से निकलकर वे यमुना के किनारे बालू पर बैठ गये। हजारों आदमी उनके साथ। लोगों ने पूछा- बताओ महाराज। मुरली में क्या सामर्थ्य था? बोले की हजारों वर्ष। बाद भी जिसकी मुरली का सामर्थ्य सुनने के लिए तुमलोग हमारे पीछे स्त्री-पुरुष, बालक-वृद्ध घर-द्वार छोंड़ करके रात को ग्यारह बजे इस बालुकामय पुलिन में आ गये, उसमें कितना सामर्थ्य रहा होगा, यह सोचो तो सही। कृष्णगृहीतमानसाः– तुम्हारे मन को संसार में जो पकड़कर रखा है, इसको छुड़ाने के ले कोई चाहिए मीठी से मीठी चीज। तुमको सचमुच सत्य में आनन्द नहीं आता है। व्यापारी को सच्चाई में मजा कहाँ आता है? अच्छे पढ़े-लिखे लोगों को जानकारी में मजा कहाँ आता है? मजा आता तो ये कलेजा के पढ़ने वाले लोग ऊधम क्यों मचाते? उच्छृंखल, अनुशासनहीन क्यों होते? सबको चाहिए आनन्द, सबको चाहिए मजा। नारायण। पंतजलि ने, कपिल ने, व्यास ने, शुदेव ने सबने सत्य कहा कि ज्ञान लो, नतीजा कि इतने लोग उनके पीछे-पीछे नहीं घूमे। परंतु कृष्ण ने कहा मजा लो। ये आनन्द बाँटने के लिए आये। कृष्ण आनन्द की प्रधानता से सच्चित् को बाँटते हैं। कपिल ज्ञान की प्रधानता से सत् और आनन्द को बाँटते हैं। पतंजलि सत्ता की प्रधानता से ज्ञान और आनन्द को बाँटते हैं, सच्चिदानन्द तो वही है, कोई गौण प्रधान कर देते हैं। श्रीकृष्ण जो हैं वे आनन्द देते हैं। अरे, छोड़ो असम्प्रज्ञात की बात, निर्विकल्पता की बात, निर्वीज की बात; छोड़ो अस्मिता की बात, अस्मितानुगत की बात, छोड़ो आनन्दानुगत की बात। यह लो रस, यह लो रास! कृष्णगृहीतमानसाः, आजग्मुरन्योन्यमहालक्षितोद्यमाः- जो जहाँ थी महाराज, जैसी थी वैसी उठ धाय। देखो, साधना के समय तो गोपियाँ मिलजुलकर साधना करती थीं- ‘कृष्णमेव जगुर्यान्त्यः’। सबेरे उठी और बाँह-में-बाँह डाली, गलबहियाँ डालकर और कन्धे पर अपनी धोती रखकर और कृष्ण, कृष्ण, कृष्ण कहती हुई, माने गाँवभर को बताकर कि कृष्ण-सा पति पाने के लिए ये गौरी-व्रत कर रही हैं, कात्यायनी व्रत कर रही हैं, यमुनाजी चली जातीं। वरदान भी प्राप्त किया सबने मिल-जुलकर, लेकिन जब बांसुरी बजी और मिलने का समय आया तो किसी ने किसी को नहीं पूछा न बताया। जैसे बहुत से मुमुक्षु सब एक साथ साधना करते थे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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