विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीरास में चंद्रमा का योगदाननिष्कलंक चंद्रमा। विष नहीं लगा है। उसने कहा- आज तो भगवान भरी आँखों से देखेंगे; आज भी यदि अन्दर विष का कलंक लगा रहा तो भगवान के नेत्रों पर उसका असर पड़ेगा। इसलिए अपने में जो कालिख लगी है, जो कलंक लगा है, उसको छोड़कर चंद्रमा आज उदय हुआ। और फिर भगवान के सामने भी जाय और न्यूनता रहे, इसमें भगवान की बदनामी भी तो है कि भगवान का भक्त हो गया परंतु कलंक का दोष नहीं छूटा- अखण्डमण्डलम्। इसका अर्थ हुआ कि न तो काल का प्रभाव है चंद्रमा पर काल के प्रभाव से चंद्रमा द्वितीया, तृतीया, चतुर्थी को कम होता है, उस प्रभाव से चंद्रमा मुक्त हो गया; और न कर्म का प्रभाव है चंद्रमा पर। यह वह कर्मवाला चंद्रमा नहीं है जिसको मुनि ने सहस्र भग हो जाने का शाप दे दिया था और जिसमें मुनि की मृगछाला की मार से छेद हो गया था। अहिल्या के संबंध से चंद्रमा में कलंक है और दक्ष के शाप के संबंध से क्षीणता है, क्षय है। तो आज जो चंद्रमा उदय हुआ है वह तो भगवान के मन में उदय हुआ है अतः कलंक और क्षयदोष से मुक्त अखण्डमण्डल चंद्रमा है। अखण्डमण्डलं रमाननाभं नवकुंकुमारुणम् । रमाननाभं- आज चंद्रमा एक खास बात लेकर आया कि वैसे चंद्रमा के साथ भगवान के कई संबंध हैं- एक तो यदुवंश का आदि पुरुष है चंद्रमा। दूसरे, चंद्रमा अत्रिका पुत्र है, अतः ब्राह्मण है; तीसरे, चंद्रमा साला है भगवान का, बड़ा मधुर संबंध है। आजकल इस संबंध की बहुत महिमा है। कलियुग की महिमा का वर्णन करते हुए लिखा गया है- |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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