विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीरास में चंद्रमा का योगदानरमाननाभंका एक दूसरा अर्थ ऐसा होता है कि रमा माने लक्ष्मी- माने राधा- तो ये कोटिलक्ष्मीमयी राधा, सर्वलक्ष्मीमयी राधा की याद आ गयी। एक-एक ब्रह्माण्ड में एक-एक विष्णु होते हैं और उनके साथ एक-एक लक्ष्मी होती हैं। तो करोड़-करोड़ ब्रह्माण्ड, करोड़-करोड़ विष्णु, करोड़-करोड़ लक्ष्मी- ये सारी लक्ष्मी कहाँ से निकली हैं? बोले- राधा से- ऐसा तंत्र- ग्रंथों में वर्णन है। गोस्वामी तुलसीदास जी ने लिखा ही है कि सीताजी से निकली हैं-उपजहिं जासु अंस गुन खानी । राधा आराधना रूप हैं। ज्यों चंद्रमा को देखा त्यों राधा रानी आकर आँख में बस गयीं, हृदय में बस गयीं- ‘रमाननाभं’। लेकिन महाराज। मुख बड़ा सुन्दर हो और भीतर न कुछ हो, तो क्या होगा। बाहर की उतनी कीमत नहीं है, कीमत तो भीतर की है। अब भीतर- क्या है चंद्रमा के? आज चंद्रमा सफेद नहीं है। आपको मालूम है कि चंद्रमा का रंग श्वेत है, पीला नहीं है, मगर जिनकी आँख में कुछ दोष होता है उसको पीला दिखता है। चंद्रमा का रंग बिलकुल श्वेत है और श्वेत भी रंग है लेकिन जिस समय मनुष्य के मन में प्रेम का उदय होता है, उस समय उसमें थोड़ी लाली मालूम पड़ती है। ऐसा सभी आवेशों में होता है- काम में, क्रोध में, लोभ में, प्रेम में। जब की आवेश आता है तो जरा रक्तिम आभा मुखारविन्द में आ जाती है। तो, नवकुड्कुमारुणम्- चंद्रमा कहता है देखो- मैं केवल शरीर से सुन्दर नहीं हूँ, मेरे अंदर प्रेम भी है। जैसे- नयी-नयी केशर हो उसके समान अनुराग के रंग में रंगा चंद्रमा उदय हुआ। अनेक कुमुदों का प्रियतम् चंद्रमा, अखण्डमण्डलम- निर्दोष चंद्रमा, राधारानी के मुखारविन्द का स्मरण दिलाने वाला चंद्रमा और अनुराग के रंग में रँगा हुआ चंद्रमा जब आया तब भगवान की दृष्टि पड़ी। अब एक सेवा चंद्रमा ने और की, क्या? वनं च तत्कोमलगोभिरञ्जतम् |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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