योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय
छठा अध्याय
रासलीला का रहस्य
परमेश्वर जाने इन लोगों ने कृष्ण के जीवन को क्यों कलंकित कर दिया। जब उससे पहले के ग्रंथों में इन बातों का कही वर्णन नहीं, तो इन पर विश्वास करने का हमें कोई कारण नहीं दीखता। दूसरे, कई एक पुराणों के अनुसार कृष्ण की अवस्था उस समय जब[2] 12 वर्ष की थी तब यह कैसे संभव हो सकता है कि 12 वर्ष की अल्प आयु में इन्हें यह सब बातें प्रकट होतीं और उनके पास तरुण स्त्रियाँ भोग-विलास की इच्छा से आतीं और कामातुर हो उनसे अपना सतीत्व नष्ट करातीं। तीसरे, महाभारत में प्रायः ऐसे स्थान आए हैं जहाँ कृष्ण को उनके शत्रुओं ने अनेक दुर्वचन कहे हैं और उनके जीवन के सब दोष गिनाये हैं। उदाहरणार्थ राजसूय यज्ञ के समय शिशुपाल क्रोध में आकर कृष्ण के अवगुण बताने लगा और उसके बचपन के सब दोष कह गया, पर उसके दुराचारी या विषयी होने का तनिक इशारा भी नहीं किया। क्या यह सम्भव था कि कृष्ण की जीवनी इतनी गंदी हो[3] और शिशुपाल क्रोधवश सभा के बीच उनके सब छोटे-बड़े अवगुण प्रकट करे और इसका[4] वर्णन तक न करे? वही अवसर तो उनके प्रकट करने का था, क्योंकि भीष्म पितामह ने सारी सभा में उसी को उच्चासन देना चाहा था। कृष्ण उनके समकालीन थे। यदि वास्तव में कृष्ण में ये दोष होते तो यह कैसे संभव था कि ऐसे-ऐसे धर्मात्मा महान पुरुष उनका ऐसा सम्मान करते और सारे आर्यावर्त में यों मान होता? संस्कृत की प्रायः सभी पुस्तकों में कृष्ण को जितेन्द्रिय लिखा है। 'जितेन्द्रिय' उसको कहते हैं जिसने अपनी इन्द्रियों को जीत लिया हो। यदि कृष्ण का वास्तव में राधा या मानवती से प्रेम था तो इन पुस्तकों में इन्हें जितेन्द्रिय क्यों लिखा। रासलीला के नृत्य के विषय में प्राचीन ग्रंथों से ऐसा प्रतीत होता है कि उस समय वृत बनाकर नाचने की प्रथा सारे भारत में थी। बहुत-से ग्रंथकार तो कहते है कि स्त्री-पुरुष मिलकर वैसे ही नाचते थे जैसे कि आजकल अंग्रेजों में उसका चलन हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ जैसे पुराणों में एक कहानी है कि राधा की सहेली मानवती का विवाह एक बुढ़िया के पुत्र से हुआ। कृष्ण मानवती को देखकर कामातुर हो गये और अपनी मनोकामना पूरी करने पर तत्पर हुए, जिसके लिए अपनी ईश्वरीय प्रभुता काम में लाकर बुढ़िया के पुत्र का वेष धारण किया और उसके घर में जा घुसे और बुढ़िया को यह पट्टी पढ़ाई कि तू द्वार पर बैठ और यदि कोई भीतर आना चाहे तो न आने देना। यदि कोई बेटे का वेष बदलकर आये और कहे कि मैं तेरा बेटा हूँ-तो भी तू द्वार मत खोलना और खुद मानवती के साथ सहवास का आनन्द लूटता रहा। (देखो ग्राउस साहब की पुस्तक ‘मथुरा’)
- ↑ वे मथुरा में आये है।
- ↑ जैसे कि ब्रह्मवैवर्त पुराण में लिखा है।
- ↑ जो महादोष कहा जा सकता है।
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