योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय पृ. 65

योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय

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छठा अध्याय
रासलीला का रहस्य


ब्रह्मवैवर्त पुराण वल्लभचारी गोसाइयों का बनाया है, जिन्होने देश में धर्म की आड़ में कैसा जाल रच रखा है, और अकथनीय अत्याचार[1] किया करते हैं। इन्हीं के एक चेले नारायण भट्ट ने ‘व्रजयात्रा’ और रासलीला की नींव डाली। जितनी पुस्तकें राधा के प्रेम विषय की मिलती है वे प्रायः सब इसी पंथ के गोस्वामियों की रची हुई हैं।

परमेश्वर जाने इन लोगों ने कृष्ण के जीवन को क्यों कलंकित कर दिया। जब उससे पहले के ग्रंथों में इन बातों का कही वर्णन नहीं, तो इन पर विश्वास करने का हमें कोई कारण नहीं दीखता।

दूसरे, कई एक पुराणों के अनुसार कृष्ण की अवस्था उस समय जब[2] 12 वर्ष की थी तब यह कैसे संभव हो सकता है कि 12 वर्ष की अल्प आयु में इन्हें यह सब बातें प्रकट होतीं और उनके पास तरुण स्त्रियाँ भोग-विलास की इच्छा से आतीं और कामातुर हो उनसे अपना सतीत्व नष्ट करातीं। तीसरे, महाभारत में प्रायः ऐसे स्थान आए हैं जहाँ कृष्ण को उनके शत्रुओं ने अनेक दुर्वचन कहे हैं और उनके जीवन के सब दोष गिनाये हैं। उदाहरणार्थ राजसूय यज्ञ के समय शिशुपाल क्रोध में आकर कृष्ण के अवगुण बताने लगा और उसके बचपन के सब दोष कह गया, पर उसके दुराचारी या विषयी होने का तनिक इशारा भी नहीं किया। क्या यह सम्भव था कि कृष्ण की जीवनी इतनी गंदी हो[3] और शिशुपाल क्रोधवश सभा के बीच उनके सब छोटे-बड़े अवगुण प्रकट करे और इसका[4] वर्णन तक न करे? वही अवसर तो उनके प्रकट करने का था, क्योंकि भीष्म पितामह ने सारी सभा में उसी को उच्चासन देना चाहा था।

कृष्ण उनके समकालीन थे। यदि वास्तव में कृष्ण में ये दोष होते तो यह कैसे संभव था कि ऐसे-ऐसे धर्मात्मा महान पुरुष उनका ऐसा सम्मान करते और सारे आर्यावर्त में यों मान होता? संस्कृत की प्रायः सभी पुस्तकों में कृष्ण को जितेन्द्रिय लिखा है। 'जितेन्द्रिय' उसको कहते हैं जिसने अपनी इन्द्रियों को जीत लिया हो। यदि कृष्ण का वास्तव में राधा या मानवती से प्रेम था तो इन पुस्तकों में इन्हें जितेन्द्रिय क्यों लिखा। रासलीला के नृत्य के विषय में प्राचीन ग्रंथों से ऐसा प्रतीत होता है कि उस समय वृत बनाकर नाचने की प्रथा सारे भारत में थी। बहुत-से ग्रंथकार तो कहते है कि स्त्री-पुरुष मिलकर वैसे ही नाचते थे जैसे कि आजकल अंग्रेजों में उसका चलन हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. जैसे पुराणों में एक कहानी है कि राधा की सहेली मानवती का विवाह एक बुढ़िया के पुत्र से हुआ। कृष्ण मानवती को देखकर कामातुर हो गये और अपनी मनोकामना पूरी करने पर तत्पर हुए, जिसके लिए अपनी ईश्वरीय प्रभुता काम में लाकर बुढ़िया के पुत्र का वेष धारण किया और उसके घर में जा घुसे और बुढ़िया को यह पट्टी पढ़ाई कि तू द्वार पर बैठ और यदि कोई भीतर आना चाहे तो न आने देना। यदि कोई बेटे का वेष बदलकर आये और कहे कि मैं तेरा बेटा हूँ-तो भी तू द्वार मत खोलना और खुद मानवती के साथ सहवास का आनन्द लूटता रहा। (देखो ग्राउस साहब की पुस्तक ‘मथुरा’)
  2. वे मथुरा में आये है।
  3. जैसे कि ब्रह्मवैवर्त पुराण में लिखा है।
  4. जो महादोष कहा जा सकता है।

संबंधित लेख

योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
ग्रन्थकार लाला लाजपतराय 1
प्रस्तावना 17
भूमिका 22
2. श्रीकृष्णचन्द्र का वंश 50
3. श्रीकृष्ण का जन्म 53
4. बाल्यावस्था : गोकुल ग्राम 57
5. गोकुल से वृन्दावन गमन 61
6. रासलीला का रहस्य 63
7. कृष्ण और बलराम का मथुरा आगमन और कंस-वध 67
8. उग्रसेन का राज्यारोहण और कृष्ण की शिक्षा 69
9. मथुरा पर मगध देश के राजा का जरासंध का आक्रमण 71
10. कृष्ण का विवाह 72
11. श्रीकृष्ण के अन्य युद्ध 73
12. द्रौपदी का स्वयंवर और श्रीकृष्ण की पांडुपुत्रों से भेंट 74
13. कृष्ण की बहन सुभद्रा के साथ अर्जुन का विवाह 75
14. खांडवप्रस्थ के वन में अर्जुन और श्रीकृष्ण 77
15. राजसूय यज्ञ 79
16. कृष्ण, अर्जुन और भीम का जरासंध की राजधानी में आगमन 83
17. राजसूय यज्ञ का आरम्भ : महाभारत की भूमिका 86
18. कृष्ण-पाण्डव मिलन 89
19. महाराज विराट के यहाँ पाण्डवों के सहायकों की सभा 90
20. दुर्योधन और अर्जुन का द्वारिका-गमन 93
21. संजय का दौत्य कर्म 94
22. कृष्णचन्द्र का दौत्य कर्म 98
23. कृष्ण का हस्तिनापुर आगमन 101
24. विदुर और कृष्ण का वार्तालाप 103
25. कृष्ण के दूतत्व का अन्त 109
26. कृष्ण-कर्ण संवाद 111
27. महाभारत का युद्ध 112
28. भीष्म की पराजय 115
29. महाभारत के युद्ध का दूसरा दृश्य : आचार्य द्रोण का सेनापतित्व 118
30. महाभारत के युद्ध का तीसरा दृश्य : कर्ण और अर्जुन का युद्ध 122
31. अन्तिम दृश्य व समाप्ति 123
32. युधिष्ठिर का राज्याभिषेक 126
33. महाराज श्रीकृष्ण के जीवन का अन्तिम भाग 128
34. क्या कृष्ण परमेश्वर के अवतार थे? 130
35. कृष्ण महाराज की शिक्षा 136
36. अंतिम पृष्ठ 151

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