योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय पृ. 64

योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय

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छठा अध्याय
रासलीला का रहस्य


रासलीला का यथार्थ चित्र तो इस प्रकार है कि वर्षा ऋतु है। चारों ओर हरियाली लहलहा रही है। एक प्रशस्त मैदान में मीलों तक घास-पात या वनस्पतियों के अतिरिक्त और कुछ दीख नहीं पड़ता। वृक्षों में फूल खिले हुए हैं और फल लटक रहे है। प्रकृति देवी का यौवन काल है। आकाश मंडल मेघों से घिर रहा हैं। मेघों का रह-रहकर मधुर स्वर से गरज जाना कानों को कैसा भला लगता है। कभी-कभी बिजली ऐसे वेग से इधर से उधर तड़प जाती है कि जिससे सारी पृथ्वी ज्योतिर्मयी हो जाती है। मेघ धीरे-धीरे बरस रहा है। पक्षिगण वृक्षों पर कलोल कर रहे हैं और उन्मत्त होकर पानी में स्नान कर रहे हैं! पत्तों पर पानी की बूँदे मोती-सी दीख पड़ती हैं, और हाथ लगाते ही चूर-चूर हो जाती हैं। वायु के झोंकों से वृक्ष जिस समय झूमने लगते हैं और उनसे पानी टप-टप चूने लगता है तो जान पड़ता है मानो अपनी प्रिया कि चाह में आँसू बहा रहे हैं। उनके आँसुओं की बूँदें जिन पर पड़ती हैं उनके अशान्त तथा संतप्त हृदय को ठंडक पहुँचाती है!

ऐसे सुहावने समय में प्रकृति मनुष्य के चित्त को चंचल कर देती हैं। दुराचारी मनुष्य अपनी अपवित्रता में उन्मत्त प्रकृति देवी के इस पवित्र सौन्दर्य पर हस्तक्षेप करने लगते हैं, पर लज्जावश मनुष्य दृष्टि से छिपकर केवल कुछ मित्रों में ही ऐसा करने पाते हैं। परन्तु जनसाधारण का हृदय अपनी सरलता में यों ही उछल पड़ता है। ऐसे सुहावने समय में प्रत्येक मनुष्य की कवित्त्व शक्ति उत्साहित हो गाने-बजाने की ओर जाती है। गोपों की छोटी-सी मंडली अपनी प्राकृतिक फुलवाड़ी में आनन्द मंगल से गाने-बजाने में मग्न हैं। बालक कृष्ण को वंशी बजाने की बड़ी चाह हैं उसने इस बाजे में प्रवीणता भी प्राप्त की हैं। जब वह वंशी बजाता है तो उसके चारों ओर भीड़ लग जाती है। गोपों के लड़के और लड़कियाँ वृत बनाकर उनके चारो ओर खड़े हैं और नाचना तथा गाना आरम्भ करते हैं। इस मंडली में जिसे देखिये वही इस रंग में रँगा हुआ दीख रहा है। ऐसे समय में कृष्ण भी वंशी बजाते-बजाते नाचते रहे हैं। बस, यही रासलीला है और यही रासलीला की विधि है।

पाठक वृन्द! यथार्थ तो बस इतना ही था जिस पर हमारे पौराणिक कवियों ने ऐसी-ऐसी युक्तियाँ लगाई, इतना ताना-बाना बुना की बस पृथ्वी और आकाश को एक कर दिया। इन तांत्रिक कवियों ने कृष्ण का ऐसा चित्र खींचा कि यदि उसका सहस्रांश भी सत्य हो तो हम यह कहने में तनिक भी नही सकुचाएँगे कि कृष्ण अपने जीवन के इस काल में बड़े विषयी और कामातुर थे। आजकल के पौराणिक विद्वानों पर भी इस बात की पोल खुल गई है और वे इन प्रेम प्रहसनों से परमेश्वरीय प्रेम का सार निकालने की चेष्टा करते हैं। पर हमारी समझ में यह चेष्टा वृथा है क्योंकि हम देखते हैं कि विष्णु पुराण में न तो राधा का वर्णन है, न गोपियों के संग कृष्ण की मुँहजोरियों का ही कुछ इशारा है और न चीरहरण की ही कहानी है। हरिवंश और महाभारत में भी इन बातों का कहीं वर्णन नहीं। यह सारी कथाएँ ब्रह्मवैवर्त और भागवत पुराण के कर्ताओं की गढन्त हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
ग्रन्थकार लाला लाजपतराय 1
प्रस्तावना 17
भूमिका 22
2. श्रीकृष्णचन्द्र का वंश 50
3. श्रीकृष्ण का जन्म 53
4. बाल्यावस्था : गोकुल ग्राम 57
5. गोकुल से वृन्दावन गमन 61
6. रासलीला का रहस्य 63
7. कृष्ण और बलराम का मथुरा आगमन और कंस-वध 67
8. उग्रसेन का राज्यारोहण और कृष्ण की शिक्षा 69
9. मथुरा पर मगध देश के राजा का जरासंध का आक्रमण 71
10. कृष्ण का विवाह 72
11. श्रीकृष्ण के अन्य युद्ध 73
12. द्रौपदी का स्वयंवर और श्रीकृष्ण की पांडुपुत्रों से भेंट 74
13. कृष्ण की बहन सुभद्रा के साथ अर्जुन का विवाह 75
14. खांडवप्रस्थ के वन में अर्जुन और श्रीकृष्ण 77
15. राजसूय यज्ञ 79
16. कृष्ण, अर्जुन और भीम का जरासंध की राजधानी में आगमन 83
17. राजसूय यज्ञ का आरम्भ : महाभारत की भूमिका 86
18. कृष्ण-पाण्डव मिलन 89
19. महाराज विराट के यहाँ पाण्डवों के सहायकों की सभा 90
20. दुर्योधन और अर्जुन का द्वारिका-गमन 93
21. संजय का दौत्य कर्म 94
22. कृष्णचन्द्र का दौत्य कर्म 98
23. कृष्ण का हस्तिनापुर आगमन 101
24. विदुर और कृष्ण का वार्तालाप 103
25. कृष्ण के दूतत्व का अन्त 109
26. कृष्ण-कर्ण संवाद 111
27. महाभारत का युद्ध 112
28. भीष्म की पराजय 115
29. महाभारत के युद्ध का दूसरा दृश्य : आचार्य द्रोण का सेनापतित्व 118
30. महाभारत के युद्ध का तीसरा दृश्य : कर्ण और अर्जुन का युद्ध 122
31. अन्तिम दृश्य व समाप्ति 123
32. युधिष्ठिर का राज्याभिषेक 126
33. महाराज श्रीकृष्ण के जीवन का अन्तिम भाग 128
34. क्या कृष्ण परमेश्वर के अवतार थे? 130
35. कृष्ण महाराज की शिक्षा 136
36. अंतिम पृष्ठ 151

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