योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय पृ. 66

योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय

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छठा अध्याय
रासलीला का रहस्य


हाँ, 'चीरहरण लीला' की कथा भागवत में है, विष्णुपुराण, महाभारत और हरिवंश में इसका वर्णन नहीं है। आजकल के पौराणिक पंडित तो इसको आलंकारिक बतलाते हैं। इसकी कथा इस प्रकार है- "एक दिन गोपियाँ किसी सरोवर में नहा रही थीं। उनके वस्त्र किनारे पर रखे थे। कृष्ण संयोग से वहाँ आ पहुँचे। वे इसी ताक में छिपे बैठे थे और वे उन वस्त्रों को लेकर एक वृक्ष पर जा बैठे जब गोपियाँ स्नान कर जल के बाहर आयीं तो देखती हैं कि उनके वस्त्र नहीं हैं। इधर-उधर ढूँढने पर देखा कि कृष्ण महाशय एक वृक्ष पर बैठे हैं और वस्त्रों की गठरी पास रख छोड़ी है।

तब गोपियाँ अपने वस्त्र उनसे माँगने लगीं और हाथ जोड़कर विनती करने लगी। तब कृष्ण ने कहाँ कि- 'नंगी मेरे सामने आओ तो दूँगा।' अतः वे सब नंगी[1] उनके सामने आई तब उन महाशय ने उनके वस्त्र लौटा दिये।"

आजकल के पौराणिक टीकाकार इसका सार यों निकालते हैं कि यहाँ 'कृष्ण' शब्द परमेश्वर के लिए प्रयुक्त हुआ है। यमुना से तात्पर्य परमेश्वर का प्रेम और गोपियों के वस्त्र से अभिप्राय सांसारिक पदार्थों से हैं। अतः इस कथा से यह भाव निकलता है कि परमात्मा के प्रेम में मग्न होकर मनुष्य को चाहिए कि किसी सांसारिक पदार्थ का विचार न करें, वरन् उसका ध्यान छोड़ दे। पर खेद है कि मनुष्य प्रेम की नदी में स्नान करके भी उन्हीं पदार्थों के पीछे दौड़ता है परमात्मा उसे पश्चात्ताप दिलाने हेतु उन पदार्थों को उठा लेता है जिससे उसका संबंध है। यहाँ तक कि वह मनुष्य अपने ईष्ट पदार्थों के लिए कोलाहल मचाता है। परमात्मा उनकी पुकार सुनकर उसे अपने समीप बुलाता है। जब वह वस्त्रहीन आने में संकोच करता है तो परमात्मा उसको यह उपदेश करता है कि मेरे समक्ष नग्न आने में संकोच मत कर। मेरे पास आने में अपना तन वस्त्र से ढकने की आवश्यकता नहीं। स्वयं को सांसारिक पदार्थों से पृथक कर मेरे पास आ। तब मैं तेरी सारी कामनाएँ पूरी करूगाँ और तन ढकने का वस्त्र दूँगा।

यह वाक्य रचना चाहे कितनी ही उत्तम क्यों न हो पर इससें भ्रम पड़ने की आशंका हैं। यदि इन सब कथाओं में ऐसी अत्युक्ति बाँधी गई है तो हमारी राय है कि इन अत्युक्तियों ने हिन्दुओं को बड़ी हानि पहुँचाई है और उनके आचार व्यवहार को भी बिगाड़ दिया हैं। परमेश्वर के लिए अब उनको छोड़ो और सीधी रीति से परब्रह्म परमेश्वर के सम्मुख उपस्थित होकर भक्ति और प्रेम के फूल चुनो। कम-से-कम कृष्ण जैसे महापुरुष को कंलकित मत करो। और किसी विचार से नहीं तो अपना पूज्य और मान्य समझकर ही उन पर दया करो। उन्हें पाप क्रम का नायक मत बनाओ और उन महानुभावों से बचो जो इस महापुरुष के नाम पर तुम्हारा व्रत बिगाड़ रहे हैं और तुम्हारी ललनाओं को नरकगामी बनाते हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. वस्त्रहीन

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योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
ग्रन्थकार लाला लाजपतराय 1
प्रस्तावना 17
भूमिका 22
2. श्रीकृष्णचन्द्र का वंश 50
3. श्रीकृष्ण का जन्म 53
4. बाल्यावस्था : गोकुल ग्राम 57
5. गोकुल से वृन्दावन गमन 61
6. रासलीला का रहस्य 63
7. कृष्ण और बलराम का मथुरा आगमन और कंस-वध 67
8. उग्रसेन का राज्यारोहण और कृष्ण की शिक्षा 69
9. मथुरा पर मगध देश के राजा का जरासंध का आक्रमण 71
10. कृष्ण का विवाह 72
11. श्रीकृष्ण के अन्य युद्ध 73
12. द्रौपदी का स्वयंवर और श्रीकृष्ण की पांडुपुत्रों से भेंट 74
13. कृष्ण की बहन सुभद्रा के साथ अर्जुन का विवाह 75
14. खांडवप्रस्थ के वन में अर्जुन और श्रीकृष्ण 77
15. राजसूय यज्ञ 79
16. कृष्ण, अर्जुन और भीम का जरासंध की राजधानी में आगमन 83
17. राजसूय यज्ञ का आरम्भ : महाभारत की भूमिका 86
18. कृष्ण-पाण्डव मिलन 89
19. महाराज विराट के यहाँ पाण्डवों के सहायकों की सभा 90
20. दुर्योधन और अर्जुन का द्वारिका-गमन 93
21. संजय का दौत्य कर्म 94
22. कृष्णचन्द्र का दौत्य कर्म 98
23. कृष्ण का हस्तिनापुर आगमन 101
24. विदुर और कृष्ण का वार्तालाप 103
25. कृष्ण के दूतत्व का अन्त 109
26. कृष्ण-कर्ण संवाद 111
27. महाभारत का युद्ध 112
28. भीष्म की पराजय 115
29. महाभारत के युद्ध का दूसरा दृश्य : आचार्य द्रोण का सेनापतित्व 118
30. महाभारत के युद्ध का तीसरा दृश्य : कर्ण और अर्जुन का युद्ध 122
31. अन्तिम दृश्य व समाप्ति 123
32. युधिष्ठिर का राज्याभिषेक 126
33. महाराज श्रीकृष्ण के जीवन का अन्तिम भाग 128
34. क्या कृष्ण परमेश्वर के अवतार थे? 130
35. कृष्ण महाराज की शिक्षा 136
36. अंतिम पृष्ठ 151

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