7. पुराणों की प्राचीनता
(11) क्या यह कथा कल्पित है?
बहुत से पुरातत्त्वज्ञों ने यह सम्मति स्थिर की है कि महाभारत की कथा कल्पित है और इसकी घटनाएँ यथार्थ नहीं हैं। बहुत-से विद्वान इस युद्ध को तो यथार्थ पर उसके नायकों को कल्पित मानते हैं।[1] हमारी राय में ये दोनों कथन मिथ्या हैं, जिसके प्रमाण ये हैं-
(1) कृष्ण और अर्जुन की वंशावली का पूरा-पूरा पता चलता है। उनके वंश में अनेक राजा-महाराजा हुए हैं जिन्होंने ऐतिहासिक समय में राज्य किया है।
(2) सारे संस्कृत साहित्य का प्रमाण उपर्युक्त कथन का खण्डन करता है।[2]
(3) कथा और कथा से संबंध रखने वालों के नाम सर्वसाधारण में प्रसिद्ध हैं तथा देश के उन प्रान्तों में भी विदित हैं जहाँ सहस्रों वर्ष से पढ़ने-लिखने का चिह्न नहीं पाया जाता। फिर कथा संबंधी पुरुषों के नाम से प्रायः स्थानों के भी नाम मिलते हैं। यदि नाम कल्पित होते तो ऐसा कदापि संभव न था।
(4) महाभारत कथा के जो अनेक संदर्भ संस्कृत साहित्य में पाये जाते हैं उनसे भी कथा की बहुत-सी घटनाओं की पुष्टि होती है।
(5) यदि इस कथा को यथार्थ मानें तो कथा संबंधी नामों का कल्पित मानने का कोई विशेष कारण नहीं दीख पड़ता, तथा उसमें यह भी प्रश्न उठता है, कि यदि ये नाम कल्पित हैं तो कथा के यथार्थ नायकों के नाम क्या थे?
(6) कृष्ण को अवतार के तुल्य माना जाना इस बात की पुष्टि करता है कि कृष्ण किसी कल्पित व्यक्ति का नाम नहीं था।
(7) हमारे विपक्षी अपने इस कथन के समर्थन में कोई प्रमाण नहीं देते। कोई ग्रंथकार तो इस बात का सहारा लेते हैं कि प्राचीन आर्यावर्त में एक स्त्री के कई पति होने की प्रथा न थी एवं द्रौपदी का पाँच पाण्डवों से विवाह करना एक अत्युक्ति है, जो यथार्थ घटना नहीं है। परन्तु महाभारत के पढ़ने वालों को मालूम है कि ग्रंथकार ने इस घटना को अपवाद[3] के रूप में वर्णन किया है और इसके लिए कारण विशेष दिखलाया है।[4] पुनः ऐसे प्रबल प्रमाणों के उपस्थित रहते हुए कुछ महानुभावों की यह राय प्रमाणित नहीं कही जा सकती और न हम कृष्ण तथा अर्जुन प्रभुति नामों को कल्पित मान सकते हैं।
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