योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय पृ. 39

योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय

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7. पुराणों की प्राचीनता


(11) क्या यह कथा कल्पित है?

बहुत से पुरातत्त्वज्ञों ने यह सम्मति स्थिर की है कि महाभारत की कथा कल्पित है और इसकी घटनाएँ यथार्थ नहीं हैं। बहुत-से विद्वान इस युद्ध को तो यथार्थ पर उसके नायकों को कल्पित मानते हैं।[1] हमारी राय में ये दोनों कथन मिथ्या हैं, जिसके प्रमाण ये हैं-

(1) कृष्ण और अर्जुन की वंशावली का पूरा-पूरा पता चलता है। उनके वंश में अनेक राजा-महाराजा हुए हैं जिन्होंने ऐतिहासिक समय में राज्य किया है।
(2) सारे संस्कृत साहित्य का प्रमाण उपर्युक्त कथन का खण्डन करता है।[2]
(3) कथा और कथा से संबंध रखने वालों के नाम सर्वसाधारण में प्रसिद्ध हैं तथा देश के उन प्रान्तों में भी विदित हैं जहाँ सहस्रों वर्ष से पढ़ने-लिखने का चिह्न नहीं पाया जाता। फिर कथा संबंधी पुरुषों के नाम से प्रायः स्थानों के भी नाम मिलते हैं। यदि नाम कल्पित होते तो ऐसा कदापि संभव न था।
(4) महाभारत कथा के जो अनेक संदर्भ संस्कृत साहित्य में पाये जाते हैं उनसे भी कथा की बहुत-सी घटनाओं की पुष्टि होती है।
(5) यदि इस कथा को यथार्थ मानें तो कथा संबंधी नामों का कल्पित मानने का कोई विशेष कारण नहीं दीख पड़ता, तथा उसमें यह भी प्रश्न उठता है, कि यदि ये नाम कल्पित हैं तो कथा के यथार्थ नायकों के नाम क्या थे?
(6) कृष्ण को अवतार के तुल्य माना जाना इस बात की पुष्टि करता है कि कृष्ण किसी कल्पित व्यक्ति का नाम नहीं था।
(7) हमारे विपक्षी अपने इस कथन के समर्थन में कोई प्रमाण नहीं देते। कोई ग्रंथकार तो इस बात का सहारा लेते हैं कि प्राचीन आर्यावर्त में एक स्त्री के कई पति होने की प्रथा न थी एवं द्रौपदी का पाँच पाण्डवों से विवाह करना एक अत्युक्ति है, जो यथार्थ घटना नहीं है। परन्तु महाभारत के पढ़ने वालों को मालूम है कि ग्रंथकार ने इस घटना को अपवाद[3] के रूप में वर्णन किया है और इसके लिए कारण विशेष दिखलाया है।[4] पुनः ऐसे प्रबल प्रमाणों के उपस्थित रहते हुए कुछ महानुभावों की यह राय प्रमाणित नहीं कही जा सकती और न हम कृष्ण तथा अर्जुन प्रभुति नामों को कल्पित मान सकते हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. वेबर, मोनियर विलियम्स तथा रमेशचन्द्र दत्त की यही धारणा थी।
  2. जैसा कि हमने ऊपर वर्णन किया है।
  3. Exception
  4. अनेक विद्वानों ने महाभारत के अन्तः साक्ष्य से ही द्रौपदी के बहुपतित्व का निराकरण किया है। द्रष्टवय- कौन कहता है द्रौपदी के पाँच पति थे? -अमर स्वामी सरस्वती

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योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
ग्रन्थकार लाला लाजपतराय 1
प्रस्तावना 17
भूमिका 22
2. श्रीकृष्णचन्द्र का वंश 50
3. श्रीकृष्ण का जन्म 53
4. बाल्यावस्था : गोकुल ग्राम 57
5. गोकुल से वृन्दावन गमन 61
6. रासलीला का रहस्य 63
7. कृष्ण और बलराम का मथुरा आगमन और कंस-वध 67
8. उग्रसेन का राज्यारोहण और कृष्ण की शिक्षा 69
9. मथुरा पर मगध देश के राजा का जरासंध का आक्रमण 71
10. कृष्ण का विवाह 72
11. श्रीकृष्ण के अन्य युद्ध 73
12. द्रौपदी का स्वयंवर और श्रीकृष्ण की पांडुपुत्रों से भेंट 74
13. कृष्ण की बहन सुभद्रा के साथ अर्जुन का विवाह 75
14. खांडवप्रस्थ के वन में अर्जुन और श्रीकृष्ण 77
15. राजसूय यज्ञ 79
16. कृष्ण, अर्जुन और भीम का जरासंध की राजधानी में आगमन 83
17. राजसूय यज्ञ का आरम्भ : महाभारत की भूमिका 86
18. कृष्ण-पाण्डव मिलन 89
19. महाराज विराट के यहाँ पाण्डवों के सहायकों की सभा 90
20. दुर्योधन और अर्जुन का द्वारिका-गमन 93
21. संजय का दौत्य कर्म 94
22. कृष्णचन्द्र का दौत्य कर्म 98
23. कृष्ण का हस्तिनापुर आगमन 101
24. विदुर और कृष्ण का वार्तालाप 103
25. कृष्ण के दूतत्व का अन्त 109
26. कृष्ण-कर्ण संवाद 111
27. महाभारत का युद्ध 112
28. भीष्म की पराजय 115
29. महाभारत के युद्ध का दूसरा दृश्य : आचार्य द्रोण का सेनापतित्व 118
30. महाभारत के युद्ध का तीसरा दृश्य : कर्ण और अर्जुन का युद्ध 122
31. अन्तिम दृश्य व समाप्ति 123
32. युधिष्ठिर का राज्याभिषेक 126
33. महाराज श्रीकृष्ण के जीवन का अन्तिम भाग 128
34. क्या कृष्ण परमेश्वर के अवतार थे? 130
35. कृष्ण महाराज की शिक्षा 136
36. अंतिम पृष्ठ 151

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