योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय पृ. 40

योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय

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7. पुराणों की प्राचीनता


(12) क्या कृष्ण परमात्मा के अवतार थेॽ

इस पुस्तक में कृष्ण विषयक जो घटनाएँ हमने एकत्र की हैं उनके पढ़ने से पाठकों को यह विदित हो जाएगा कि कृष्ण महाराज का अवतार मानना कहाँ तक सत्य है। हमारी राय है कि कृष्णचन्द्र ने कभी स्वयं इस बात का दावा नहीं किया और न उनके समय में किसी ने उनको यह पदवी ही दी। ये बातें नई गढ़न्त हैं और बौद्ध समय के पश्चात हुई हैं।

समस्त वैदिक साहित्य अवतार सिद्धान्त के विरुद्ध है। वेद पुकार-पुकारकर कहता है कि परमेश्वर कभी देह धारण नहीं करता।[1] यूरोपीय विद्वान भी इस बात में हमसे सहमत हैं और कहते हैं कि अवतारों का सिद्धान्त बौद्धमत के पश्चात प्रचलित हुआ। इससे पहले भारतवर्ष में मूर्तिपूजा या अवतारों के सिद्धान्त को मानने वाला कोई भी नहीं था। हम इस पुस्तक के अन्तिम भाग में इस बात पर विचार करेंगे कि कृष्ण का चरित हमारे इस मन्तव्य की कहाँ तक पुष्टि करता है तथा पाठक भी इसके अध्ययन से उपयुक्त सम्मति स्थिर कर सकेंगे।

सहृदय पाठक! हम इन पृष्ठों में आपके सम्मुख एक महापुरुष का जीवन पेश करते हैं। श्रीकृष्ण यद्यपि अवतार न थे, परन्तु मनुष्यों की सूची में ऐसे श्रेष्ठतम आचरण के मनुष्य थे जिनको संस्कृत विद्वानों ने ‘मर्यादा पुरुषोत्तम’ की पदवी दी है। वह अपने समय के महान शिक्षक थे, योद्धा तथा विद्यासम्पन्न थे। उनकी जीवनी हमारे लिए आदर्श रूप है। हम उनकी शिक्षा से बहुत कुछ लाभ उठा सकते हैं। हमारी राय में आधुनिक छात्रमण्डली को उनकी जीवनी ध्यानपूर्वक पढ़नी चाहिए, क्योंकि यूरोप का नास्तिक दर्शन बहुत-से हिन्दू युवकों के चित्त को चलायमान करके उनको हिन्दू धर्म के यथार्थ तत्त्व से पराङमुख कर रहा है और इनके दल के दल यूरोपियन जीवन-दर्शन के पीछे भागे जा रहे हैं।

उनकी दृष्टि में अच्छे स्वादिष्ट पकवान खाने, सुन्दर वस्त्र-आभूषण पहनने तथा फैशनेबल सवारियों में बैठकर सुख भोग से दिन काटने के अतिरिक्त जीवन का कुछ और उद्देश्य नहीं। आत्मा को वे कोई चीज नहीं समझते, धर्म को वे घृणा की दृष्टि से देखते हैं तथा यावत सांसारिक आपत्तियों को इसी का कारण समझते हैं। वे इसी में भारतवर्ष का हित समझते हैं कि इसका सर्वनाश कर दिया जाय और जनसाधारण के हितार्थ एक लोकपालित राज्य स्थापित करके एक ‘कामनवेल्थ’ खड़ा किया जाय जिसमें कोई किसी से यह न पूछे कि तेरा धर्म क्या है? और तू कोई धर्म रखता है या नहीं? उनकी सम्मति में धर्म संबंधी सब पुस्तकें समुद्र में फेंक दी जाएँ तथा धर्मसभाओं को देश निकाला दे दिया जाय। उनकी राय है कि ऐसा न करने से देश का उद्धार नहीं हो सकता। भारतवर्ष का राजनीतिक हित भी इसी पर निर्भर है कि किसी को दूसरे के आचरण पर प्रश्न करने का अधिकार न हो।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. वेदों में ईश्वर को अज, अकाय, अव्रण आदि विशेषणों से सम्बोधित किया गया है।

संबंधित लेख

योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
ग्रन्थकार लाला लाजपतराय 1
प्रस्तावना 17
भूमिका 22
2. श्रीकृष्णचन्द्र का वंश 50
3. श्रीकृष्ण का जन्म 53
4. बाल्यावस्था : गोकुल ग्राम 57
5. गोकुल से वृन्दावन गमन 61
6. रासलीला का रहस्य 63
7. कृष्ण और बलराम का मथुरा आगमन और कंस-वध 67
8. उग्रसेन का राज्यारोहण और कृष्ण की शिक्षा 69
9. मथुरा पर मगध देश के राजा का जरासंध का आक्रमण 71
10. कृष्ण का विवाह 72
11. श्रीकृष्ण के अन्य युद्ध 73
12. द्रौपदी का स्वयंवर और श्रीकृष्ण की पांडुपुत्रों से भेंट 74
13. कृष्ण की बहन सुभद्रा के साथ अर्जुन का विवाह 75
14. खांडवप्रस्थ के वन में अर्जुन और श्रीकृष्ण 77
15. राजसूय यज्ञ 79
16. कृष्ण, अर्जुन और भीम का जरासंध की राजधानी में आगमन 83
17. राजसूय यज्ञ का आरम्भ : महाभारत की भूमिका 86
18. कृष्ण-पाण्डव मिलन 89
19. महाराज विराट के यहाँ पाण्डवों के सहायकों की सभा 90
20. दुर्योधन और अर्जुन का द्वारिका-गमन 93
21. संजय का दौत्य कर्म 94
22. कृष्णचन्द्र का दौत्य कर्म 98
23. कृष्ण का हस्तिनापुर आगमन 101
24. विदुर और कृष्ण का वार्तालाप 103
25. कृष्ण के दूतत्व का अन्त 109
26. कृष्ण-कर्ण संवाद 111
27. महाभारत का युद्ध 112
28. भीष्म की पराजय 115
29. महाभारत के युद्ध का दूसरा दृश्य : आचार्य द्रोण का सेनापतित्व 118
30. महाभारत के युद्ध का तीसरा दृश्य : कर्ण और अर्जुन का युद्ध 122
31. अन्तिम दृश्य व समाप्ति 123
32. युधिष्ठिर का राज्याभिषेक 126
33. महाराज श्रीकृष्ण के जीवन का अन्तिम भाग 128
34. क्या कृष्ण परमेश्वर के अवतार थे? 130
35. कृष्ण महाराज की शिक्षा 136
36. अंतिम पृष्ठ 151

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