योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय पृ. 27

योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय

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6. मानसिक भावों में परिवर्तन


इस संकीर्णता से निकलकर बाहर मैदान में आते ही मानसिक शक्तियाँ कुछ ऐसी विस्तृत हुई कि वे गूढ़ और तात्त्विक विषयों के मनन की ओर झुकने लगीं और झट मेरे कान में भनक पड़ी- अरे, एक ओर तो श्रीकृष्णचंद्र के नाम के साथ ऐसी अश्लील बातें जोड़ी जाती हैं, उधर उन्हीं को उस जगत्प्रसिद्ध ग्रंथ ‘गीता’ का रचयिता कहा जाता है। यह पुस्तक अपने विषय को गूढ़ता, सच्चे उपदेश, भाषा की सरलता, भक्ति और प्रेम की दृष्टि से संसार के मनुष्यकृत ग्रंथों में अद्वितीय है, जिसकी अलौकिक लेख प्रणाली अपना आदर्श आप ही कही जा सकती है। कानों में यह भनक पड़नी थी कि साथ ही किसी ने उत्तर दिया- जो नीति और आध्यात्मिक विद्या का ऐसा उपदेशक हो वह ऐसा तमाशबीन, विषयी और धूर्त नहीं हो सकता जैसा लोग कृष्णलीला में दर्शाते हैं। हमारे हृदय में अभी इस भाव का अंकुर मात्र ही था और अभी भली-भाँति जड़ नहीं पकड़ सका था कि एक दूसरी भनक सुनाई दी और वह यह थी कि कृष्णचन्द्र पर विषयी होने का जो कलंक लगाते हैं वह केवल कवियों का हस्तक्षेप है। इनको किसी प्रकार वास्तविक घटना नहीं कह सकते। फिर ऐसे प्रमाण पाये जाते हैं जिससे सिद्ध होता है कि इन लोगों[1] ने अपने इच्छानुकूल उन्हें अपना लक्ष्य बना लिया है। निदान यह भाव ऐसे परिपक्व होते गये कि कुछ कालोपरान्त उनके हृदय पर श्रीकृष्ण की बुद्धिमत्ता और नीति ने अपना पूर्ण अधिकार जमा लिया।

अब वह समय आ पहुँचा है जब कोई शिक्षित मनुष्य इस बात पर विश्वास नहीं करता कि कृष्ण के आचारण वास्तव में वैसे ही थे, जैसा कृष्णलीला में दिखलाते हैं। धर्म-विषयक चाहे परस्पर कितना ही विरोध हो, पर शिक्षित मंडली अब तक उनके माथे मँढ़ती है। पुराने फैशन के पौराणिक धर्मनिष्ठा वाले भी इस यत्न में हैं कि श्रीमद्भागवत में से प्रेम और भक्ति का निचोड़ निकालें और उससे यह सिद्ध करें कि उनकी मोटी बातों की तह में पवित्र प्रेम और अमृत रूपी भक्ति के अमूल्य रत्न दबे पड़े हैं।

इस प्रकार हर-एक पुरुष इस अनुसन्धान में लगा है कि उसकी वह से दुर्लभ और अमूल्य रत्न खोज निकालें और उस महात्मा के जीवन की घटनाओं को इधर-उधर से एकत्र करके जीवन चरित्र के रूप में प्रकाशित करें। यह बात प्रमाणित है कि पूर्व काल में जीवन चरित्र लिखने की परिपाटी न थी इसी से श्रीकृष्ण का कोई जीवन वृतान्त हमारे साहित्य में मौजूद नहीं है। इसलिए उनके जीवन की कहानी क्रमानुसार लिखना मानो उन कवियों के हस्तक्षेपों और विश्वासों के संग्रह से उन वास्तविक घटनाओं का सार निकालकर अलग करना है, जिनको हम युक्तिसंगत कह सकें और जिनके क्रमानुसार संग्रह को हम जीवन चरित्र की पदवी दे सकें।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. कवियों

संबंधित लेख

योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
ग्रन्थकार लाला लाजपतराय 1
प्रस्तावना 17
भूमिका 22
2. श्रीकृष्णचन्द्र का वंश 50
3. श्रीकृष्ण का जन्म 53
4. बाल्यावस्था : गोकुल ग्राम 57
5. गोकुल से वृन्दावन गमन 61
6. रासलीला का रहस्य 63
7. कृष्ण और बलराम का मथुरा आगमन और कंस-वध 67
8. उग्रसेन का राज्यारोहण और कृष्ण की शिक्षा 69
9. मथुरा पर मगध देश के राजा का जरासंध का आक्रमण 71
10. कृष्ण का विवाह 72
11. श्रीकृष्ण के अन्य युद्ध 73
12. द्रौपदी का स्वयंवर और श्रीकृष्ण की पांडुपुत्रों से भेंट 74
13. कृष्ण की बहन सुभद्रा के साथ अर्जुन का विवाह 75
14. खांडवप्रस्थ के वन में अर्जुन और श्रीकृष्ण 77
15. राजसूय यज्ञ 79
16. कृष्ण, अर्जुन और भीम का जरासंध की राजधानी में आगमन 83
17. राजसूय यज्ञ का आरम्भ : महाभारत की भूमिका 86
18. कृष्ण-पाण्डव मिलन 89
19. महाराज विराट के यहाँ पाण्डवों के सहायकों की सभा 90
20. दुर्योधन और अर्जुन का द्वारिका-गमन 93
21. संजय का दौत्य कर्म 94
22. कृष्णचन्द्र का दौत्य कर्म 98
23. कृष्ण का हस्तिनापुर आगमन 101
24. विदुर और कृष्ण का वार्तालाप 103
25. कृष्ण के दूतत्व का अन्त 109
26. कृष्ण-कर्ण संवाद 111
27. महाभारत का युद्ध 112
28. भीष्म की पराजय 115
29. महाभारत के युद्ध का दूसरा दृश्य : आचार्य द्रोण का सेनापतित्व 118
30. महाभारत के युद्ध का तीसरा दृश्य : कर्ण और अर्जुन का युद्ध 122
31. अन्तिम दृश्य व समाप्ति 123
32. युधिष्ठिर का राज्याभिषेक 126
33. महाराज श्रीकृष्ण के जीवन का अन्तिम भाग 128
34. क्या कृष्ण परमेश्वर के अवतार थे? 130
35. कृष्ण महाराज की शिक्षा 136
36. अंतिम पृष्ठ 151

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