योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय पृ. 149

योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय

Prev.png

पैंतीसवाँ अध्याय
कृष्ण महाराज की शिक्षा


अठारहवीं सदी के प्राकृतिक दर्शन ने जीवन को सुख और आनन्द का स्थान मान लिया है। इसका परिणाम यह हुआ भिन्न-भिन्न स्वरूपों में मनुष्यों में स्वार्थबुद्धि का विचार इतना बलवान हो गया कि उसे नियमों की परवाह ही न रही। प्रत्येक पुरुष अपने ही लाभ और स्वार्थ के ध्यान में निमग्न है।

सिद्धान्त और सच्चाई के लिए बलिदान करने का विचार इतना कमज़ोर हो गया कि लोग थोड़ी-सी तकलीफ या थोड़ी-सी निष्फलता से अपने सिद्धान्तों को पैरों में कुचल डालते हैं और अपनी इच्छा को बदलकर उस काम को छोड़ देते हैं जिसको उन्होंने किसी उद्देश्य के पालन के लिए आरम्भ किया था।

मैंने सोचा कि यद्यपि मुझको जिन्दगी के इस दर्शन से नफरत है और मेरा दिल उन विचारों पर आरुढ़ नहीं है, तब भी मेरी आत्मा इन्हीं ख्यालों की शिकार हो रही है। मैं जिन्दगी के उद्देश्य को अपनी जिन्दगी के आराम व कष्ट से, सिद्धि व असिद्धि से, लोगों की प्रीति व अप्रीति तथा योग और वियोग के विचारों से ही जाँचता हूँ।

दुःख है कि अपने ही कर्म से मैं अपने इस विश्वास को जवाब दे बैठा कि नर-देह तो क्षणिक है और भिन्न-भिन्न जीवन में इस प्रकार उन्नति करता है जैसे कोई आदमी इस विश्वास से एक बहुत ऊँचे पहाड़ पर चढ़ता जावे मानो वहाँ ईश्वर बैठा है और वहाँ पहुँचने पर उसके दर्शन मिलेंगे। आत्मा के भिन्न-भिन्न जीवन तो वास्तव में एक ही लड़ी के दाने हैं जिनसे आत्मा शनैः-शनैः प्रकाश पाता हुआ उन्नति करता है।

प्रत्येक जीवन का एक-न-एक लक्ष्य होता है अन्यथा जीवन का अर्थ ही क्या होगा? इसके अतिरिक्त जो लोग जीवन शब्द का दूसरा अर्थ लगाते हैं वे अपने ठीक रास्ते से भूले हुए हैं। वह जीवन ही क्या जिसका कोई लक्ष्य या उद्देश्य न हो। अतएव जिन्दगी का एक मुख्य उद्देश्य नियत करके फिर वह लिखता है कि इस प्रधान लक्ष्य के अन्तर्गत प्रत्येक जीवन की कोई वासना होती है जो इसकी विशेष अवस्था पर निर्भर होती है परन्तु जिसका स्वभाव भी उसी लक्ष्य की प्राप्ति है, जो प्रत्येक जीवात्मा का अंतिम लक्ष्य है। कुछ मनुष्यों के जीवन का अभिप्राय यह होगा कि वह अपने इर्द-गिर्द के लोगों के आचार और व्यवहार को सुधारें अर्थात अपनी जाति की शिक्षा को सुधारें।

जो लोग इनसे भी अधिक उन्नतिशील हैं वे अपनी जाति में जातीयता के विचार को फैलाने की चेष्टा करें या धार्मिक और राजनीतिक उन्नति का बीड़ा उठावें। येन केन प्रकारेण यह बात निर्विवाद सिद्ध है कि जीवन एक मिशन है और कर्त्तव्य या उसका धर्म उसके लिए अच्छे से अच्छा नियम है। प्रत्येक पुरुष की उन्नति इस पर निर्भर है कि वह अपनी जिन्दगी के मिशन को समझकर उसके अनुसार ही अपना कर्त्तव्य-पालन करे, क्योंकि इसी कर्त्तव्य को पालन करने या न करने पर यह बात भी निर्भर होगी कि इस जीवन के अन्त होने पर फिर उसको किस प्रकार का जीवन मिलेगा। प्रत्येक पुरुष को स्वयं यह अधिकार है कि वह अपने कर्मो द्वारा अपने भाग्य का निर्णय करे।

Next.png

संबंधित लेख

योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
ग्रन्थकार लाला लाजपतराय 1
प्रस्तावना 17
भूमिका 22
2. श्रीकृष्णचन्द्र का वंश 50
3. श्रीकृष्ण का जन्म 53
4. बाल्यावस्था : गोकुल ग्राम 57
5. गोकुल से वृन्दावन गमन 61
6. रासलीला का रहस्य 63
7. कृष्ण और बलराम का मथुरा आगमन और कंस-वध 67
8. उग्रसेन का राज्यारोहण और कृष्ण की शिक्षा 69
9. मथुरा पर मगध देश के राजा का जरासंध का आक्रमण 71
10. कृष्ण का विवाह 72
11. श्रीकृष्ण के अन्य युद्ध 73
12. द्रौपदी का स्वयंवर और श्रीकृष्ण की पांडुपुत्रों से भेंट 74
13. कृष्ण की बहन सुभद्रा के साथ अर्जुन का विवाह 75
14. खांडवप्रस्थ के वन में अर्जुन और श्रीकृष्ण 77
15. राजसूय यज्ञ 79
16. कृष्ण, अर्जुन और भीम का जरासंध की राजधानी में आगमन 83
17. राजसूय यज्ञ का आरम्भ : महाभारत की भूमिका 86
18. कृष्ण-पाण्डव मिलन 89
19. महाराज विराट के यहाँ पाण्डवों के सहायकों की सभा 90
20. दुर्योधन और अर्जुन का द्वारिका-गमन 93
21. संजय का दौत्य कर्म 94
22. कृष्णचन्द्र का दौत्य कर्म 98
23. कृष्ण का हस्तिनापुर आगमन 101
24. विदुर और कृष्ण का वार्तालाप 103
25. कृष्ण के दूतत्व का अन्त 109
26. कृष्ण-कर्ण संवाद 111
27. महाभारत का युद्ध 112
28. भीष्म की पराजय 115
29. महाभारत के युद्ध का दूसरा दृश्य : आचार्य द्रोण का सेनापतित्व 118
30. महाभारत के युद्ध का तीसरा दृश्य : कर्ण और अर्जुन का युद्ध 122
31. अन्तिम दृश्य व समाप्ति 123
32. युधिष्ठिर का राज्याभिषेक 126
33. महाराज श्रीकृष्ण के जीवन का अन्तिम भाग 128
34. क्या कृष्ण परमेश्वर के अवतार थे? 130
35. कृष्ण महाराज की शिक्षा 136
36. अंतिम पृष्ठ 151

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः