योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय पृ. 110

योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय

Prev.png

पच्चीसवाँ अध्याय
कृष्ण के दूतत्त्व का अन्त


"इसलिए हे राजपुत्र! तुझको उचित है कि तू अपनी मर्यादानुसार व्यवहार कर। जो आचरण तुमने ग्रहण किया है वह राजर्षियों के योग्य नहीं है। अनुचित दया की गिनती निर्बलता में होती है। तेरे पिता या मैंने कभी तेरे लिए ऐसी बुद्धि की आशा नहीं की। मैं तो सदा तेरे लिए यज्ञ, दान और पुरुषार्थ की परमेश्वर से प्रार्थना करती रही हूँ।"

"मैं सदा परमात्मा से यही वन्दना करती आई हूँ कि वह तेरे आत्मा को महान बनावे और तुझे वीरता और पुरुषार्थ प्रदान करे।"

"देवता जब प्रसन्न होते हैं तो आयुष, धन और संतान की वृद्धि करते हैं। माता-पिता की सदा यही इच्छा होती है कि उनकी संतान विद्वान हो, दानी हो और प्रजापालक हो। इसलिए तेरा कर्त्तव्य है कि जिस वर्ण में तेरा जन्म हुआ है उसके धर्म का पालन कर। हे युधिष्ठिर, दान लेना ब्राह्मण का काम है तेरा काम नहीं। तू क्षत्रिय है। तेरा धर्म है कि तू अपने बाहुबल से विपत्ति काल में दूसरों की सहायता करे। इसलिए अब विलम्ब क्यों करता है, क्यों अपने बाहुबल से अपना राजपाट नहीं लौटा लेता। कैसे दुख की बात है कि तुझे जन्म देकर भी मैं दूसरों का दिया हुआ अन्न खाऊँ। युधिष्ठिर! तू क्यों अपने पूर्वजों के यश और कीर्ति में बट्टा लगाता है। उठ! वीरों की तरह युद्ध कर और धर्म-मर्यादा को छोड़कर भाइयों सहित पाप का भागी न बन।" इसी तरह के संदेश कुन्ती ने भीम और अर्जुन के लिए भी दिये और कृष्ण को प्यार देकर विदा किया।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
ग्रन्थकार लाला लाजपतराय 1
प्रस्तावना 17
भूमिका 22
2. श्रीकृष्णचन्द्र का वंश 50
3. श्रीकृष्ण का जन्म 53
4. बाल्यावस्था : गोकुल ग्राम 57
5. गोकुल से वृन्दावन गमन 61
6. रासलीला का रहस्य 63
7. कृष्ण और बलराम का मथुरा आगमन और कंस-वध 67
8. उग्रसेन का राज्यारोहण और कृष्ण की शिक्षा 69
9. मथुरा पर मगध देश के राजा का जरासंध का आक्रमण 71
10. कृष्ण का विवाह 72
11. श्रीकृष्ण के अन्य युद्ध 73
12. द्रौपदी का स्वयंवर और श्रीकृष्ण की पांडुपुत्रों से भेंट 74
13. कृष्ण की बहन सुभद्रा के साथ अर्जुन का विवाह 75
14. खांडवप्रस्थ के वन में अर्जुन और श्रीकृष्ण 77
15. राजसूय यज्ञ 79
16. कृष्ण, अर्जुन और भीम का जरासंध की राजधानी में आगमन 83
17. राजसूय यज्ञ का आरम्भ : महाभारत की भूमिका 86
18. कृष्ण-पाण्डव मिलन 89
19. महाराज विराट के यहाँ पाण्डवों के सहायकों की सभा 90
20. दुर्योधन और अर्जुन का द्वारिका-गमन 93
21. संजय का दौत्य कर्म 94
22. कृष्णचन्द्र का दौत्य कर्म 98
23. कृष्ण का हस्तिनापुर आगमन 101
24. विदुर और कृष्ण का वार्तालाप 103
25. कृष्ण के दूतत्व का अन्त 109
26. कृष्ण-कर्ण संवाद 111
27. महाभारत का युद्ध 112
28. भीष्म की पराजय 115
29. महाभारत के युद्ध का दूसरा दृश्य : आचार्य द्रोण का सेनापतित्व 118
30. महाभारत के युद्ध का तीसरा दृश्य : कर्ण और अर्जुन का युद्ध 122
31. अन्तिम दृश्य व समाप्ति 123
32. युधिष्ठिर का राज्याभिषेक 126
33. महाराज श्रीकृष्ण के जीवन का अन्तिम भाग 128
34. क्या कृष्ण परमेश्वर के अवतार थे? 130
35. कृष्ण महाराज की शिक्षा 136
36. अंतिम पृष्ठ 151

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः