अरे, सब गोपियाँ चली गयीं क्या?
कोई नहीं रह गया?
मैं अबतक पानी भरकर क्यों नहीं गयी?
मुझे तो कुछ नहीं हुआ,
मैं बिल्कुल ठीक हूँ।
मैं तो केवल कल और आज की बात सोच रही थी।
तो क्या सचमुच वह कन्हैया ही सबको विकल कर गया है?
क्या उसके न रहने से ही घाट की यह दशा हो गयी?
वह था तो ऐसा ही,
न जाने कितनी बार उसने मेरा कलश मलकर पानी भर दिया था।
उँह, जाने वाले का क्या सोच,
चलूँ, पानी भर लूँ।
हाय, जल में डूबा कलश तो ऊपर उठता ही नहीं।
आज क्या बात हो गयी?
कलश तो बिल्कुल वही है।
नटखट मोहन की वंशी बज जाती
तो कलश झट से ऊपर आ जाता।