बावरी गोपी -प्रेम भिखारी पृ. 4

बावरी गोपी -प्रेम भिखारी

1. कल की बात

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अरे, सब गोपियाँ चली गयीं क्या?
कोई नहीं रह गया?
मैं अबतक पानी भरकर क्यों नहीं गयी?
मुझे तो कुछ नहीं हुआ,
मैं बिल्कुल ठीक हूँ।
मैं तो केवल कल और आज की बात सोच रही थी।
तो क्या सचमुच वह कन्हैया ही सबको विकल कर गया है?
क्या उसके न रहने से ही घाट की यह दशा हो गयी?
वह था तो ऐसा ही,
न जाने कितनी बार उसने मेरा कलश मलकर पानी भर दिया था।
उँह, जाने वाले का क्या सोच,
चलूँ, पानी भर लूँ।
हाय, जल में डूबा कलश तो ऊपर उठता ही नहीं।
आज क्या बात हो गयी?
कलश तो बिल्कुल वही है।
नटखट मोहन की वंशी बज जाती
तो कलश झट से ऊपर आ जाता।

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बावरी गोपी -प्रेम भिखारी
क्रम संख्या पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. कल की बात 1
2. क्या मैं बावरी हूँ? 6
3. मेरी ही भूल थी 11
4. और कूक 18
5. कैसे थे वे दिन? 23
6. कल आयेंगे 29
7. रे भौंरे, मत गूँज 37
8. इस मक्खन का क्या करूँ? 44
9. हाय, यह तो स्वप्न था 52
10. कूबरी, तुझे धिक्कार है 58
11. कूबरी! तू धन्य है 64
12. कुछ न कहना 69
13. मैं भली कि मछली 75
14. कोई तो बताये 83
15. सुनाऊँ किसको मनकी बात 90
16. यह है प्रेम-परिणाम 98
17. यही आशा तो बैरिन हो गयी 105
18. बस, एक झलक 112
19. मैं तो चली पिया की डागरिया 119

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