बावरी गोपी -प्रेम भिखारी पृ. 29

बावरी गोपी -प्रेम भिखारी

6. कल आयेंगे

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आज कुछ अजीब-सा चित्त हो रहा है।
मन कहता है कि मनमोहन कुंज में बैठे मुरली बजा रहे हैं।
मन तो आज कल सनकी हो गया है।
भला यह भी विश्वास करने योग्य बात है?
वे क्यों आने लगे?
उन्हें वहाँ कमी ही क्या है?
रत्नजटित गगनचुंबी भवन के सामने कँटीले कुंजों की याद?
मूर्ख से भी मूर्ख होगा, वह भी विश्वास न करेगा।
पर, वाह रे निर्लज्ज मन!
अब भी तू अपनी ही कह रहा है।
हो सकता है कूबरी से कुछ खटक गयी हो,
मान कर बैठे हों,
किंतु वहाँ कैसे मान करते?
सैकड़ों-हजारों दास-दासियाँ,
जनशून्य स्थान ही न मिला होगा।
शायद इसी से कुंजों की याद आ गयी हो।

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बावरी गोपी -प्रेम भिखारी
क्रम संख्या पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. कल की बात 1
2. क्या मैं बावरी हूँ? 6
3. मेरी ही भूल थी 11
4. और कूक 18
5. कैसे थे वे दिन? 23
6. कल आयेंगे 29
7. रे भौंरे, मत गूँज 37
8. इस मक्खन का क्या करूँ? 44
9. हाय, यह तो स्वप्न था 52
10. कूबरी, तुझे धिक्कार है 58
11. कूबरी! तू धन्य है 64
12. कुछ न कहना 69
13. मैं भली कि मछली 75
14. कोई तो बताये 83
15. सुनाऊँ किसको मनकी बात 90
16. यह है प्रेम-परिणाम 98
17. यही आशा तो बैरिन हो गयी 105
18. बस, एक झलक 112
19. मैं तो चली पिया की डागरिया 119

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