नयनाभिराम!
ये हठीले नेत्र नहीं मानते।
कितना समझाती हूँ कि
फिर वह रूप देखने की लालसा मत करो!
वर्षोंतक तो अपलक होकर देख चुके हो,
उस रूप में अब कुछ वृद्धि थोड़े ही हुई होगी।
वृद्धि की कौन कहे, वैसा रूप भी न रह गया होगा।
मोरपंख के स्थान पर रत्नों से जड़ा हुआ मुकुट होगा,
वह सुघर साँवला शरीर जरीदार रेशमी वस्त्रों से ढका होगा।
दुपट्टे की वह फहरान न होगी,
पीताम्बर भी उस ढंग का न होगा,
छोटे-छोटे कर-कमलों में वह मुरली न होगी,
नेत्रों में चंचलता के स्थान पर गंभीरता होगी।
बोलो, देखोगे उनका यह परिवर्तित रूप?