बावरी गोपी -प्रेम भिखारी पृ. 3

बावरी गोपी -प्रेम भिखारी

1. कल की बात

Prev.png

कल और आज में कितना अन्तर हो गया।
कल यहीं पर कितनी चहल-पहल थी,
यमुना की लोल लहरियाँ भी
वंशीवाले की वंशीपर नृत्य करती-सी मालूम होती थीं,
तट से टकरानेवाली लहरें ताल-सी देती थीं,
किन्तु आज मालूम होता है कि वे ही लोल लहरियाँ
किसी के वियोग में तड़पकर छटपटा रही हैं।
तट की लहरें मानों अपना माथ पटक-पटककर रो रही हैं।
कल तक गायों का झुंड यहीं डटा रहता था,
आज सब चुपचाप पानी पीकर किसी को ढूँढ़ने-सी चली जाती हैं।
उपद्रवी ग्वाल-छोकरों के मारे जी खीझ जाता था,
आज किसी का पता नहीं।
‘पहले मेरा उठा दो’, ‘पहले मेरा उठा दो’ ध्वनि के कारण
कोई बात सुनायी नहीं पड़ती थी,
आज सुनने के लिये कोई शब्द ही नहीं।
स्थान न पाने के कारण लोगों ने
इस घाटपर स्नान करना छोड़ दिया था,
बदनाम कर रक्खा था कि
इस घाट में तो गोपाल, गोपी और गोप-बालकों की ही गुज़र है,
आज यह श्मशान बना है।

Next.png

संबंधित लेख

बावरी गोपी -प्रेम भिखारी
क्रम संख्या पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. कल की बात 1
2. क्या मैं बावरी हूँ? 6
3. मेरी ही भूल थी 11
4. और कूक 18
5. कैसे थे वे दिन? 23
6. कल आयेंगे 29
7. रे भौंरे, मत गूँज 37
8. इस मक्खन का क्या करूँ? 44
9. हाय, यह तो स्वप्न था 52
10. कूबरी, तुझे धिक्कार है 58
11. कूबरी! तू धन्य है 64
12. कुछ न कहना 69
13. मैं भली कि मछली 75
14. कोई तो बताये 83
15. सुनाऊँ किसको मनकी बात 90
16. यह है प्रेम-परिणाम 98
17. यही आशा तो बैरिन हो गयी 105
18. बस, एक झलक 112
19. मैं तो चली पिया की डागरिया 119

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः