बावरी गोपी -प्रेम भिखारी पृ. 11

बावरी गोपी -प्रेम भिखारी

3. मेरी ही भूल थी

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मनमोहन!
मुझे वे दिन स्मरण आते हैं,
जब मेरे विवाह की चर्चा चल रही थी।
जब सखियों ने सुना कि
वृन्दावन के किसी गोप से मेरा सम्बन्ध होने जा रहा है,
तो नित्य ही आकर छेड़ने लगीं।
नटवर!
तुम्हारी रसिकता की दुहाई
चारोगंग ओर फिर चुकी थी,
वंशी के जादू की कहानी
दूर-दूर के घरों में भी
कही जाती थी।
तुम्हारी साँवली-सलोनी मूर्ति की प्रशंसा
कहाँ नहीं होती थी!
तुम्हारा चोरी का स्वभाव तो सब जानते ही थे,
व्रजांगनाओं से तुम्हारा बरबस कर उगाहना भी
किसी से छिपा न था।
कदाचित् ही कोई ऐसा रहा हो,
जो तुम्हारे इस कर का रहस्य न समझता हो।
रासविहारी!

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बावरी गोपी -प्रेम भिखारी
क्रम संख्या पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. कल की बात 1
2. क्या मैं बावरी हूँ? 6
3. मेरी ही भूल थी 11
4. और कूक 18
5. कैसे थे वे दिन? 23
6. कल आयेंगे 29
7. रे भौंरे, मत गूँज 37
8. इस मक्खन का क्या करूँ? 44
9. हाय, यह तो स्वप्न था 52
10. कूबरी, तुझे धिक्कार है 58
11. कूबरी! तू धन्य है 64
12. कुछ न कहना 69
13. मैं भली कि मछली 75
14. कोई तो बताये 83
15. सुनाऊँ किसको मनकी बात 90
16. यह है प्रेम-परिणाम 98
17. यही आशा तो बैरिन हो गयी 105
18. बस, एक झलक 112
19. मैं तो चली पिया की डागरिया 119

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