प्राणप्यारे!
आने के लिये अवकाश नहीं था
तो समाचार तो भेज सकते थे।
तुम्हारे ध्यान में यह बात क्यों नही आती कि
वहाँ प्रेमियों की क्या दशा होगी?
कोई कहीं आता-जाता है
तो कुशल-समाचार लेता-देता रहता है।
तुम तो ऐसा व्यवहार कर रहे हो,
मानो तुम कभी व्रज में रहे ही नहीं,
व्रज के लोगों से तुम्हारा कोई सम्बन्ध ही नहीं!
भला यह भी कोई बात है?
कैसे रहते हो?
दिन कैसे कटते हैं?
माखन-मिश्री मिलती है या नहीं?
बाँसुरी बजाते हो या छोड़ दिया?
इन सबका समाचार तो देना था।