बावरी गोपी -प्रेम भिखारी पृ. 83

बावरी गोपी -प्रेम भिखारी

14. कोई तो बताये

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प्राणप्यारे!
आने के लिये अवकाश नहीं था
तो समाचार तो भेज सकते थे।
तुम्हारे ध्यान में यह बात क्यों नही आती कि
वहाँ प्रेमियों की क्या दशा होगी?
कोई कहीं आता-जाता है
तो कुशल-समाचार लेता-देता रहता है।
तुम तो ऐसा व्यवहार कर रहे हो,
मानो तुम कभी व्रज में रहे ही नहीं,
व्रज के लोगों से तुम्हारा कोई सम्बन्ध ही नहीं!
भला यह भी कोई बात है?
कैसे रहते हो?
दिन कैसे कटते हैं?
माखन-मिश्री मिलती है या नहीं?
बाँसुरी बजाते हो या छोड़ दिया?
इन सबका समाचार तो देना था।

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बावरी गोपी -प्रेम भिखारी
क्रम संख्या पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. कल की बात 1
2. क्या मैं बावरी हूँ? 6
3. मेरी ही भूल थी 11
4. और कूक 18
5. कैसे थे वे दिन? 23
6. कल आयेंगे 29
7. रे भौंरे, मत गूँज 37
8. इस मक्खन का क्या करूँ? 44
9. हाय, यह तो स्वप्न था 52
10. कूबरी, तुझे धिक्कार है 58
11. कूबरी! तू धन्य है 64
12. कुछ न कहना 69
13. मैं भली कि मछली 75
14. कोई तो बताये 83
15. सुनाऊँ किसको मनकी बात 90
16. यह है प्रेम-परिणाम 98
17. यही आशा तो बैरिन हो गयी 105
18. बस, एक झलक 112
19. मैं तो चली पिया की डागरिया 119

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