बावरी गोपी -प्रेम भिखारी पृ. 58

बावरी गोपी -प्रेम भिखारी

10. कूबरी, तुझे धिक्कार है

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हे भगवान्!
नींद भी रूठ गयी।
कब से पड़ी-पड़ी करवट बदल रही हूँ,
एक क्षण के लिये भी झपकी नहीं लगती!
मन को बहुत बहलाती हूँ,
धीरज बँधाती हूँ कि
कभी तो श्यामसुन्दर के दर्शन होंगे।
दूसरी-दूसरी बात सोचती हूँ;
पर पता नहीं,
कब उनकी लीलाएँ स्मरण आ जाती हैं।
आराम से सोना हम लोगों के भाग्य में
विधाता ने लिखा ही नहीं।
पहले कन्हैया की वंशी नहीं सोने देती थी,
अब उस की याद सोने नहीं देती।

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बावरी गोपी -प्रेम भिखारी
क्रम संख्या पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. कल की बात 1
2. क्या मैं बावरी हूँ? 6
3. मेरी ही भूल थी 11
4. और कूक 18
5. कैसे थे वे दिन? 23
6. कल आयेंगे 29
7. रे भौंरे, मत गूँज 37
8. इस मक्खन का क्या करूँ? 44
9. हाय, यह तो स्वप्न था 52
10. कूबरी, तुझे धिक्कार है 58
11. कूबरी! तू धन्य है 64
12. कुछ न कहना 69
13. मैं भली कि मछली 75
14. कोई तो बताये 83
15. सुनाऊँ किसको मनकी बात 90
16. यह है प्रेम-परिणाम 98
17. यही आशा तो बैरिन हो गयी 105
18. बस, एक झलक 112
19. मैं तो चली पिया की डागरिया 119

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