बावरी गोपी -प्रेम भिखारी पृ. 105

बावरी गोपी -प्रेम भिखारी

17. यही आशा तो बैरिन हो गयी

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मेरे कान्हा!
देखो, आज मैं कितनी प्रसन्न हूँ,
सास जी ने मुझे छोड़ दिया।
तीन-चार दिन तक बाँध रक्खा,
मैं सचमुच पागल थोड़े थी,
जो बहुत दिनों तक बँधे रहना पड़ता।
आखिर सास जी ने कहा कि दिमाग ठीक है,
कभी-कभी गरमी बढ़ जाती है।
यह कहकर उन्होंने बन्धन खोल दिये।
पास में बैठकर बहुत ऊँचा-नीचा भी समझाया।
किंतु तुमने तो वह जादू कर दिया है,
जिस पर दूसरा रंग चढ़ता ही नहीं।
मुझे तो ऐसा प्रतीत होता है कि मेरा ही दिमाग ठीक है,
बाकी सब पागल हैं।

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बावरी गोपी -प्रेम भिखारी
क्रम संख्या पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. कल की बात 1
2. क्या मैं बावरी हूँ? 6
3. मेरी ही भूल थी 11
4. और कूक 18
5. कैसे थे वे दिन? 23
6. कल आयेंगे 29
7. रे भौंरे, मत गूँज 37
8. इस मक्खन का क्या करूँ? 44
9. हाय, यह तो स्वप्न था 52
10. कूबरी, तुझे धिक्कार है 58
11. कूबरी! तू धन्य है 64
12. कुछ न कहना 69
13. मैं भली कि मछली 75
14. कोई तो बताये 83
15. सुनाऊँ किसको मनकी बात 90
16. यह है प्रेम-परिणाम 98
17. यही आशा तो बैरिन हो गयी 105
18. बस, एक झलक 112
19. मैं तो चली पिया की डागरिया 119

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