मेरे कान्हा!
देखो, आज मैं कितनी प्रसन्न हूँ,
सास जी ने मुझे छोड़ दिया।
तीन-चार दिन तक बाँध रक्खा,
मैं सचमुच पागल थोड़े थी,
जो बहुत दिनों तक बँधे रहना पड़ता।
आखिर सास जी ने कहा कि दिमाग ठीक है,
कभी-कभी गरमी बढ़ जाती है।
यह कहकर उन्होंने बन्धन खोल दिये।
पास में बैठकर बहुत ऊँचा-नीचा भी समझाया।
किंतु तुमने तो वह जादू कर दिया है,
जिस पर दूसरा रंग चढ़ता ही नहीं।
मुझे तो ऐसा प्रतीत होता है कि मेरा ही दिमाग ठीक है,
बाकी सब पागल हैं।