विचित्रता तो देखो नटवर!
एक बुद्धिमान् और चतुर को पागल ने बाँध दिया था।
यह बात बीत गयी,
उसका स्मरण व्यर्थ है।
आज मेरी प्रसन्नता से तुम्हें भी प्रसन्न होना चाहिये,
किंतु तुम प्रसन्न क्यों होने लगे?
प्रसन्न तो तब होते जब मेरे दुःख से दुखी होते।
मैंने तुम्हारा बड़ा भरोसा किया था कि आकर छुड़ाओगे।
सोचा था, न आओगे तो कम-से-कम
मेरे दुःख पर सहानुभूति प्रकट करते हुए
मेरे घरवालों को मुझे बन्धन मुक्त करने के लिये लिख दोगे।
पर हाय! न तुम आये, न तुम्हारा कुछ सन्देशा आया।
यह तो कहो! भगवान् ने सास जी के मन में
जाने कौन सी प्रेरणा कर दी जो उन्होंने छोड़ दिया।