बावरी गोपी -प्रेम भिखारी पृ. 106

बावरी गोपी -प्रेम भिखारी

17. यही आशा तो बैरिन हो गयी

Prev.png

विचित्रता तो देखो नटवर!
एक बुद्धिमान् और चतुर को पागल ने बाँध दिया था।
यह बात बीत गयी,
उसका स्मरण व्यर्थ है।
आज मेरी प्रसन्नता से तुम्हें भी प्रसन्न होना चाहिये,
किंतु तुम प्रसन्न क्यों होने लगे?
प्रसन्न तो तब होते जब मेरे दुःख से दुखी होते।
मैंने तुम्हारा बड़ा भरोसा किया था कि आकर छुड़ाओगे।
सोचा था, न आओगे तो कम-से-कम
मेरे दुःख पर सहानुभूति प्रकट करते हुए
मेरे घरवालों को मुझे बन्धन मुक्त करने के लिये लिख दोगे।
पर हाय! न तुम आये, न तुम्हारा कुछ सन्देशा आया।
यह तो कहो! भगवान् ने सास जी के मन में
जाने कौन सी प्रेरणा कर दी जो उन्होंने छोड़ दिया।

Next.png

संबंधित लेख

बावरी गोपी -प्रेम भिखारी
क्रम संख्या पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. कल की बात 1
2. क्या मैं बावरी हूँ? 6
3. मेरी ही भूल थी 11
4. और कूक 18
5. कैसे थे वे दिन? 23
6. कल आयेंगे 29
7. रे भौंरे, मत गूँज 37
8. इस मक्खन का क्या करूँ? 44
9. हाय, यह तो स्वप्न था 52
10. कूबरी, तुझे धिक्कार है 58
11. कूबरी! तू धन्य है 64
12. कुछ न कहना 69
13. मैं भली कि मछली 75
14. कोई तो बताये 83
15. सुनाऊँ किसको मनकी बात 90
16. यह है प्रेम-परिणाम 98
17. यही आशा तो बैरिन हो गयी 105
18. बस, एक झलक 112
19. मैं तो चली पिया की डागरिया 119

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः