गोपी गीत -करपात्री महाराज पृ. 45

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गोपी गीत -करपात्री महाराज

गोपी गीत 1

“कैतवरहितं प्रेम न तिष्ठति मानुषे लोके, यदि भवति न तस्य विरहः सति विरहे को जीवति।”

अर्थात, कहते हैं संसार में कैतवरहित प्रेम संभव नहीं होता; यदि कदाचित् सम्भव भी हो जाय तो उसमें विप्रलम्भ नहीं होता-यदि कदाचित् विप्रलम्भ भी हो जाय तो कौन जीवन-धारण कर सकता है? इसका उत्तर देती हुई वे कह रही हैं, ‘त्वयि धृतासवः’ हे श्यामसुन्दर! हमारे प्राण आपमें ही निहित हैं अतः प्रयाण भी नहीं कर सकते अन्यथा अवश्य ही स्थिर न रह पाते। आपमें निहित होने के कारण अपने प्राणों पर भी हमारा अधिकार नहीं रह गया है।

“यत्ते सुजात चरणाम्बुरुहं स्तनेषु
भीताः शनैः प्रिय दधीमहि कर्कशेषु।
तेनाटवीमटसि तद् व्यथते न किंस्वित्
कूर्पादिभिर्भ्रमति धीर्भवदायुषां नः।”[1]

उक्त श्लोक प्रसंग में भी गोपांगनाओं की उक्ति है, ‘भवदायुषाम-भवानेव-आयुर्यासां ता भवदायुषस्तासां भवदायुषां।’ विधाता ने प्राण तो हमें दिए परन्तु हमारी आयु आपके हाथों में दे दी। अतः अत्यन्त सन्त्रस्त होते हुए भी प्राण हमारे शरीर से निकल नहीं पाते; अथवा ‘त्वयि धृतासवः’ आपके मंगलमय मुखचंद्र के दर्शन की आकांक्षा एवं आपके लोकोत्तर सौगन्ध्य, सौरस्य, सौन्दर्य, माधुर्य-सुधा-जलनिधि स्वरूप का रसास्वादन करने की अभिलाषा के कारण ही हमारे प्राण हमारे शरीरों में स्थिर रह पा रहे हैं अन्यथा अवश्य ही प्रयाण कर जाते।

रुढ, अधिरूढ, मोहनाख्य, मदनाख्य एवं महाभाव आदि प्रेम की अत्यन्त उत्कृष्ट अवस्थाएँ हैं। रासेश्वरी, नित्य-निकुन्जेश्वरी राधारानी तो स्वयं ही माहाभावावतार-स्वरूपा हैं। कहते हैं, कहाँ ये व्यभिचार-दोष-दुष्टा वनचरी गोपालीगण। ऐसे वर्णन प्रातिभासिक हैं; भगवत्-महिमा का वर्णन ही इनका लक्ष्य है। ऐसे वर्णन इस बात का प्रमाण हैं कि अत्यन्त निकृष्ट कोटि की इन वनचरी वनिताओं द्वारा भी प्रेमपूर्वक भजे जाने पर अनन्त-कोटि-ब्रह्माण्डनायक अनन्त-अचिन्त्य-गुण-गणों के एकमात्र आस्पद, अघटित-घटना-पटीयान्, स्वप्रकाश, परात्पर परब्रह्म, परमेश्वर प्रभु भक्तों के अपकर्ष एवं अपने उत्कर्ष को विस्मृत कर भक्त-भावानुसार ही उनका अनुवर्तन करते हैं। गीता-वाक्य है, ‘ये यथा मां प्रपद्यन्ते तास्तथैव भजाम्यहम्।[2]वस्तुतः भगवदीयत्वाभिमानिनी ये वनचरी व्रजवनिताएं भगवान् शुक एवं उद्धव द्वारा भी वन्दनीय हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. श्रीमद्भागवत 10। 31। 19
  2. 4। 11

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क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
1. भूमिका 1
2. प्रवेशिका 21
3. गोपी गीत 1 23
4 गोपी गीत 2 63
5. गोपी गीत 3 125
6. गोपी गीत 4 154
7. गोपी गीत 5 185
8. गोपी गीत 6 213
9. गोपी गीत 7 256
10. गोपी गीत 8 271
11. गोपी गीत 9 292
12. गोपी गीत 10 304
13. गोपी गीत 11 319
14. गोपी गीत 12 336
15. गोपी गीत 13 364
16. गोपी गीत 14 389
17. गोपी गीत 15 391
18. गोपी गीत 16 412
19. गोपी गीत 17 454
20. गोपी गीत 18 499
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