गोपी गीत -करपात्री महाराज पृ. 435

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गोपी गीत -करपात्री महाराज

गोपी गीत 16

श्रीकृष्ण-वेणु-नाद-श्रवण से गोप-बालाओं के हृदय में प्रेम का अजस्र प्रवाह आपूर हुआ, उनके सम्पूर्ण बाँधों का खण्डन हुआ, उनके तन-मन-प्राण-अन्तःकरण सब उस लोकोत्तर प्रवाह में बह चले।
पराशरजी कहते हैं,

‘यावतः कुरुते जन्तुः सम्बन्धान् मनसः प्रियान्।
तावन्तोऽस्य निखन्यन्ते हृदये शोकशंगकवः।।’[1]

अर्थात विश्व के सम्बन्धों को प्राणी जितना अधिक बनाता चलता है, अपने हृदय में उतनी ही लौह-शालाकाएँ ठोंक लेता है। तात्पर्य कि जितने मनःप्रिय लौकिक सम्बन्ध बनाए जाते हैं उतनी ही वेदना की सामग्री उपस्थित होती जाती है।

‘कतिनामसुता न लालिताः कतिवा नेहवधूरभुंजि हि।
क्वनुते क्वचताः क्वावावयं भवसंगः खलु पान्थसंगमः।।’[2]

अर्थात कितने जन्म-जन्मान्तरों में, कितने असंख्य पुत्र-प्रपौत्रों का मैंने पालन-पोषण नहीं किया? कितने कल्पान्तरों से कितनी असंख्य कोटि सुकुमारियों का स्पर्श करता आ रहा हँ; आज वे सब कहाँ है? तात्पर्य कि जगत् आविचारतः रमणीय, मृगमरीचिकावत् क्षणभंगुर, विनश्वर, श्रौत-सुख है। अस्तु, निर्विकार, एकरस, अखण्ड, अनन्त, कूटस्थ, अच्युत भगवान् श्रीकृष्ण में नेह लगाने पर मदन-मोहन, श्यामसुन्दर से नाता जोड़ लेने पर सम्पूर्ण दुःख-दर्द क समूल उन्मूलन हो जाता है। संसार के सम्पूर्ण सुख च्युत है; अतः क्षण-भंगुर पदार्थ-जन्यच्युत सुखानुभूति को त्यागकर पति-पुत्र, बन्धु-बान्धव, ऐश्वर्यादि सम्पूर्ण सांसरिक सुखों को त्यागकर अभंगुर, अच्युत, भगवत्-सम्बंध बना लेने पर दुःख भोग का अवसर ही उपस्थित न होगा।
उक्त श्लोक में प्रयुक्त ‘अच्युत’ सम्बोधन में व्यंजना है। भगवान् श्रीकृष्ण अन्तरधान हैं; उनेक अदर्शन से गोपांगनाएँ विप्रयोग-जन्य तीव्र ताप से दग्ध हो रही हैं; स्पष्टतः यह न कहते हुए भगवान् श्रीकृष्ण अपने प्रणत-जन-रंजन-स्वरूप से प्रच्युत हो रहे हैं, वे कहती हैं कि आप अच्युत हैं; अपने स्वरूप से विच्युत न होना ही आपका स्वभाव है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. विष्णुपुराण 1/17/66
  2. शंकर दिग्वजय 5/53 शंकराचार्य’

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गोपी गीत
क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
1. भूमिका 1
2. प्रवेशिका 21
3. गोपी गीत 1 23
4 गोपी गीत 2 63
5. गोपी गीत 3 125
6. गोपी गीत 4 154
7. गोपी गीत 5 185
8. गोपी गीत 6 213
9. गोपी गीत 7 256
10. गोपी गीत 8 271
11. गोपी गीत 9 292
12. गोपी गीत 10 304
13. गोपी गीत 11 319
14. गोपी गीत 12 336
15. गोपी गीत 13 364
16. गोपी गीत 14 389
17. गोपी गीत 15 391
18. गोपी गीत 16 412
19. गोपी गीत 17 454
20. गोपी गीत 18 499
21. गोपी गीत 19 537

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