गोपी गीत -करपात्री महाराज पृ. 414

Prev.png

गोपी गीत -करपात्री महाराज

गोपी गीत 16

नाम, रूप एवं गुणगानसंयुक्त यह आहवान रूप वेणु-गीत पीयूष गोपांगंनाओं के साधना-संस्कृत कर्ण-कुहरों द्वारा प्रविष्ट हो उनके अन्तरम में स्पष्टतः अनुभूत हुआ। इस अनुभव से उद्वेलित हो वे तत्काल भगवद्-दर्शन के लिए चल पडीं परन्तु कान्तादिकों के द्वारा बीच में ही अवरूद्ध कर ली गईं; वे विवश गोपिकाएँ छटपटाकर वहीं रह गईं और वहीं बैठकर मीलित नेत्रों से तद्भावयुक्त ध्यान-धाराणादि से युक्त हो एकाग्रचित्त से ध्यान करने लगीं।

‘दुःसहप्रेष्ठविरहतीव्रतापधुताशुभाः।
ध्यानप्राप्ताच्युताश्लेषनिर्वृत्या क्षीणमंग्लाः।।[1]

दुःसह प्रेष्ठ-विरहजन्य तीव्र ताप से उनके सम्पूर्ण शुभाशुभ प्रकंपित हो गए, बाधित हो गए और उनको ध्यान में ही श्याम-सुन्दर, मदन-मोहन, व्रजेन्द्र-नन्दन, अनन्त-कोटि-कन्दर्प-दर्प-दमन-पटीयान्, निखिल-रसामृत-सिंधु भगवान् श्रीकृष्ण का आश्लेष प्रत्यक्षतः प्राप्त हुआ। ‘क्षीणमंग्लाः‘ ध्यानावास्था में प्राप्त इस भगवदाश्लेषजन्य लोकोत्तर आनन्द में सम्पूर्ण शुभ भी बाधित हो गए कहीं-कहीं ‘अक्षीणमंग्लाः‘ अर्थ भी किया गया है। ‘अक्षीण-परिपुष्टं मंगलम‘ भगवत्ःसंभोगोपयोगी श्री-विग्रह ही मंगल है; यह मंगल अक्षीण हो गया परितोष को प्राप्त हो गया तात्पर्य कि प्राकृतता का जो लवलेश शेष रह गया था वह भी ध्यान-गम्य भगवदाश्लेष से बाधित हो गया और पूर्णरसात्मकता का प्रस्फुटन हुआ।

‘तमेव परमात्मानं जारबुद्धयापि सड्गताः।
जहुर्गुणमयं देहं सघः प्रक्षीणबन्धनाः।।‘, श्रीमद्‌भा0 10/29/11

ध्यानावस्था में प्राप्त अच्युत–आश्लेष से पूर्णतः निर्वृक्तिक हो वे भगवान श्रीकृष्ण को प्राप्त हुईं; भगवान की मंगलमयी अनुकम्पा से उनके प्राकृत देह समाप्त हुए और वे अलौकिक, अप्राकृत, दिव्य देह को धारण कर यमुना-पुलिन पर रासलीला हेतु आई। ये गोपांगनाएँ कह रही हैं, ‘पतिसुतान्वयभ्रातृबान्धवानति विलडगंध्य तेऽन्त्यच्युतागताः' हे अच्युत! हम सर्वस्व का त्यागकर, पति, पुत्र, बन्धु, बान्धव के आदेशों के विरुद्ध भी आपकी शरण में आई हैं। गोपांगनाएँ के सुतत्त्वेन स्वीकृत सुत नहीं थे; इनमें कुछ उढा, अनूढा, अनन्य-पूर्विका, अन्य-पूर्विका आदि कई प्रकार की थीं; इनका विस्तृत वर्णन पूर्व-श्लोक-प्रसंगों में हो चुका है। वस्तुतः तो गोपांगनाओं में अन्यपूर्विकात्व है ही नहीं; मायिक-प्रतीति ही उनका ऊढात्व है।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. श्रीमद्भाव० 10/29/10

संबंधित लेख

गोपी गीत
क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
1. भूमिका 1
2. प्रवेशिका 21
3. गोपी गीत 1 23
4 गोपी गीत 2 63
5. गोपी गीत 3 125
6. गोपी गीत 4 154
7. गोपी गीत 5 185
8. गोपी गीत 6 213
9. गोपी गीत 7 256
10. गोपी गीत 8 271
11. गोपी गीत 9 292
12. गोपी गीत 10 304
13. गोपी गीत 11 319
14. गोपी गीत 12 336
15. गोपी गीत 13 364
16. गोपी गीत 14 389
17. गोपी गीत 15 391
18. गोपी गीत 16 412
19. गोपी गीत 17 454
20. गोपी गीत 18 499
21. गोपी गीत 19 537

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः