गोपी गीत -करपात्री महाराज पृ. 41

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गोपी गीत -करपात्री महाराज

गोपी गीत 1

अर्थात, स्वभावतः ही जीवमात्र परमात्मा का परमांतरंग, परम घनिष्ठ है तथापि भगवत्-प्रपत्ति, भगवत्-शरणागति अनिवार्यतः अपेक्षित है। मधुसूदन सरस्वती ने शरणागति के तीन प्रकार कहे हैं ‘तस्यैवाहं ममैवासौ, सोऽहम् इत्येव।’ अर्थात् मैं उसका हूँ, वह मेरा है अथवा मैं ही वह हूँ ये तीनों ही भाव भगवत्-प्रपत्ति, भगवत्-शरणागति के अन्तर्गत आते हैं। गोस्वामी तुलसीदास कहते हैं, ‘मैं सेवक रघुपति पति मोरे, अस अभिमान जाहि जनि भोरे।’ इन्हीं भावों से प्रेरित गोपांगनाएँ भी भगवान श्रीकृष्ण परमात्मा को कभी मेरे प्राण-वल्लभ, मेरे प्राणनाथ, मेरे प्रियतम आदि सम्बोधनों से पुकारती हैं तो कभी अपने को ही उनकी प्रेयसी, प्रियतमा, सखी आदि कहने लगती हैं। ‘गीत-गोविन्द’ में वर्णन है ‘मधुरिपुरहमिति भावन शीला’ भाव-विभोर राधारानी कह उठती हैं, ‘देखो सखी, मैं ही तो कृष्ण हूँ।” भृंगी-कीटन्यायतः ऐसे कथत सर्वतः तथ्य ही हैं। जैसे भृंगी कीट का ध्यान करते-करते कीट ही हो जाती है वैसे ही राधारानी भी श्रीकृष्णचन्द्र का निरन्तर चिन्तन करते-करते श्रीकृष्णचन्द्र स्वरूप ही हो जाती हैं, उनसे अभिन्न एवं तादात्म्य भाव को प्राप्त हो जाती हैं। गोस्वामी जी कहते हैं,

“आनन्द सिन्धु मध्य तव बासा, बिनु जाने कत मरत पियासा।”

अथवा

“बरफ पूतरी सिन्धु बिच, बदति पियास पियास।”

जैसे बरफ की पुत्तलिका, स्वयं ही उसी जल से निर्मित होते हुए भी पानी में निरन्तर निवास करते हुए भी अज्ञानवशात् प्यास से व्याकुल रहती है वैसे ही आनन्द-सिन्धु परमात्मा से अभिन्न, अभेद्य एवं तादात्म्य होते हुए भी अज्ञ जीवात्मा परमात्मा से वियोग का अनुभव करते हुए दुःखी रहता है। परमात्मा में अपने सर्वस्व का पूर्ण रूप से अर्पण कर देने पर कोई भिन्न सत्ता ही नहीं रह जाती। अतः सहज ही चिन्दा का आधार एवं विषय दोनों ही समाप्त हो जाते हैं। यह उत्कृष्टाति-उत्कृष्ट भावना सर्वकल्याणकारिणी है। ऐसी सर्वोत्कृष्ट भावनाएँ सहसा ही नहीं बन जातीं अतः सर्वप्रथम बौद्धिक प्रयास द्वारा चिन्तन एवं मनन अनिवार्य है। निरन्तर विचार करते रहो कि हे प्रभो! हम आपके हैं, हमारा-आपका कोई नाता जुड़ जाय। ‘मोहि तोहि नाते अनेक, मानिये जो भावै।’ अथवा ‘गतिर्भर्ता प्रभुः साक्षी निवासः शरणं सुहृत्।’[1]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. श्री. भ. गी. 9।18

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गोपी गीत
क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
1. भूमिका 1
2. प्रवेशिका 21
3. गोपी गीत 1 23
4 गोपी गीत 2 63
5. गोपी गीत 3 125
6. गोपी गीत 4 154
7. गोपी गीत 5 185
8. गोपी गीत 6 213
9. गोपी गीत 7 256
10. गोपी गीत 8 271
11. गोपी गीत 9 292
12. गोपी गीत 10 304
13. गोपी गीत 11 319
14. गोपी गीत 12 336
15. गोपी गीत 13 364
16. गोपी गीत 14 389
17. गोपी गीत 15 391
18. गोपी गीत 16 412
19. गोपी गीत 17 454
20. गोपी गीत 18 499
21. गोपी गीत 19 537

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