गोपी गीत -करपात्री महाराजगोपी गीत 1“चिन्ता मोहि यह अपारा, अपजस नहिं होय तुम्हारा।” हे नाथ! हम तो दुःखी हैं ही; हमें एक चिन्ता सर्वाधिक सता रही है; हमारी एकमात्र चिन्ता है कि कहीं तुम्हारा अपयश न हो। जीवात्मा के प्रति परमात्मा की असंगता का तात्पर्य यह है कि अनात्मा किंवा जड़ जगत् किंवा प्रकृति और प्राकृत-प्रपन्च एवं प्रकृति-प्राकृत-विकार से परमात्मा असंश्लिष्ट है। वस्तुतः जीवात्मा और परमात्मा का असाधारण सम्बन्ध है। अद्वैतवाद के अनुसार ‘युज्यतेऽने नेतियुक् सम्बन्धः सामानः अविशेषः युक् तादात्म्यलक्षणसम्बन्धो ययोस्तौ।’ जीवात्मा एवं परमात्मा दोनों का तादात्म्य संबंध है। जैसे समुद्र एवं तरंग का अथवा कटक-मकुट या कुण्डल एवं सुवर्ण का अथवा महाकाश एवं घटाकाश का तादात्म्य सम्बन्ध है, वैसे ही परमात्मा एवं जीवात्मा का भी तादात्म्य, अविच्छेद्य, अभेद सम्बन्ध है। तुलसीदास कहते हैं, ‘कहियत भिन्न न भिन्न’ अथवा ‘सो तैं तोहि ताहि नहि भेदा। वारि बीचि जिमि मावहिं वेदा।’ शंकराचार्य कहते हैं, “सत्यपि भेदापगमे नाथ तवाऽहं न मामकीनस्त्वम। अर्थात हे नाथ, यथार्थतः आपके और हममें कोई भेद है ही नहीं तथापि समुद्र की तरंग की तरह हम भी आपके हैं। परमात्मा एवं जीवात्मा के इस तादात्म्य एवं अभिन्न सम्बन्ध के रहते हुए भी उनमें प्राधान्याप्राधान्य भाव-विवक्षा है। जैसे समुद्र एवं तरंग में तादात्म्य सम्बन्ध होते हुए समुद्र प्रधान है और तरंग गौण है ‘क्वचन समुद्रो न तारंगः।’ जैसे समुद्र की ही तरंग होती है, तरंग का समुद्र कदापि नहीं होता, वैसे ही परमात्मा प्रधान और जीवात्मा गौण है। गौण होते हुए भी जीवात्मा स्वभावतः ही परमात्मा का तरंगवत् अभेद्य, अभिन्न अंश है तथापि जन्मजन्मान्तर के संस्कारवशात प्राणी अपने को कर्ता एवं भोक्ता मानने लगता है, फलतः वह अपने आनन्दमय शुद्ध स्वरूप से विमुख हो अनेकानेक कर्मफलों से बाधित हो जाता है। इस विपरीत दिशा में प्रवाहित भाव-धारा को पुनः मूलोन्मुखी बना लेना ही भगवत्-प्रपत्ति, भगवत्-शरणागति है। प्रपत्ति अर्थात पूर्णतः प्रतिष्ठा-प्राप्ति। जीवात्मा के देह, इन्द्रिय, मन, बुद्धि, अहंकार से युक्त स्वत्व को निर्विकार, विशुद्ध, सर्वाधिष्ठान, स्वप्रकाश, परमात्मा में पूर्णतः प्रस्थापित कर देना, समर्पित कर देना ही भगवत्-प्रपन्नता है। “सकृदेव प्रपन्नाय तवास्मीति च याचते। अभयं सर्वभूतेभ्यो ददाम्येतद्व्रतं मम।।”[1] |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ वाल्मी0 रामा0 6।18।33