गोपी गीत -करपात्री महाराजगोपी गीत 15जैसे प्रथम प्रदीप-प्रभा से करोड़ों वर्ष का अंधकार भी तत्क्षण समाप्त हो जाता है क्योंकि अंधकार का नाश कर देना ही प्रकाश का स्वभाव है। ‘विषया विनिवर्तते निराहारस्य देहिनः। अनशन से बढ़कर कोई तप नहीं क्योंकि इससे तत्काल विकार प्रशान्त हो जाते हैं तथापि यदा-कदा अनशनकारी को अन्न में इतना प्रेम हो जाता है कि उसको अन्न की ही चिन्ता दिन-रात बनी रहती है। ऐसे अनेक साधन है जिनसे रागादि की अंशतः निवृत्ति हो जाती है किन्तु सम्पूर्णतः निवृत्ति सम्भव नहीं। अधिष्ठानस्वरूप भगवत्-तत्त्व के साक्षात्कार से ही रागादिकों की पूर्णरूपेण निवृत्ति सम्भव है। ‘भिद्यते हृदयग्रन्थिश्छिद्यन्ते सर्वसंशयाः। परावर, परब्रह्म का दर्शन प्राप्त करने पर ही हृदय-ग्रंथि छिन्न होती है और ‘कामायेस्य हृदि श्रिताः’[5] हृदय में स्थित सम्पूर्ण काम समूल नष्ट हो जाते हैं। भगवत्-साक्षात्कार ही ‘इतररागविस्मारणम्’ [6] संसार के अन्य सम्पूर्ण राग को भुला देने वाला है। पूर्व श्लोक के निवृत्तिपक्षीय व्याख्यान में उक्त विषय कहा जा चुका है।इस श्लोक में कह रहे हैं ‘त्वामपश्यताम् त्रुटिपरिमितोपि कालः युगायते।’ जो आपका दर्शन नहीं कर पाते, भगवत्-दर्शन नहीं कर पाते उनके लिये सम्पूर्ण काल दुःखात्मक ही है; दुःख-काल सुदीर्घ होता है और सुख-काल अल्प होता है। संसार के सम्पूर्ण सुख आपेक्षिक हैं; वस्तुतः सम्पूर्ण संसार दुःखात्मक ही है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ श्री0 भ0 गीता 2/59
- ↑ श्रीमद्भा0 1/12/6
- ↑ म0 भा0 शा0 प0 161/7
- ↑ मुण्डको0 2/2/8
- ↑ मुण्डको0 2/3/14
- ↑ श्रीमद्भा0 10/31/14