गोपी गीत -करपात्री महाराज पृ. 399

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गोपी गीत -करपात्री महाराज

गोपी गीत 15

‘गतो यामो गतं दिनम्’ यह एक याम व्यतीत हुआ, यह एक दिन व्यतीत हुआ; सन्ध्या हो चली, अब आते ही होंगे’ इस तरह एक-एक क्षण गिनकर वे अपना समय व्यतीत करती हैं। वे कह रही हैं, ’अदर्शने दर्शनोत्कंठा दृष्टे विश्लेषाशङा’ अदर्शन-काल मे दर्शन की तीव्र उत्कंठा और दर्शन-काल में विश्लेषण की आशंका के कारण भी हम सदा दुःखी रहती हैं। दुर्लभ वस्तु की प्राप्ति हो जाने पर स्वभावतः ही विश्लेषभीरुता बनी रहती है। ‘पद्मपुराण’ में उल्लिखित भद्रतनु की कथा इसका विशिष्ट उदाहरण है।[1]

गोपाङनायें प्रेम मार्ग की आचार्य हैं, अनन्य अनुरागवती हैं, भावस्वरूपा हैं, भावात्मिका है अतः इनकी स्वाभाविक उक्तियों में भी महतोतिमहान् भाव सन्निहित हैं। ‘कानन’ शब्द की निन्दा-पक्ष में व्याख्या करते हुए वे पुनः विचार करने लगती हैं, यह कानन ही तो वृन्दावन धाम है; वृन्दावन धाम के अनुग्रह से ही तो भगवत्-प्राप्ति होती है। भक्ति-सिद्धान्तानुसार नाम, रूप, लीला एवं ‘धाम’इन सबका भगवत्-प्रेम में उद्रेक होता है। ‘विपिनराज सीमा के बाहर हरि हूँ को न निहार’ जैसी उक्ति धाम के महत्त्व की ही द्योतक है। धाम में ही परब्रह्म का प्राकट्य अद्भुत आनन्द का दायक होता है क्योंकि अधिष्ठान-भेद से परिणाम में भी भेद हो जाता है; जैसे स्वाती-बिन्दु सर्प के मुख में विष एवं गजकर्ण में दिव्य गजमुक्ता बन जाता है वैसे ही परत्पर परब्रह्म अनन्त अखण्ड ब्रह्माण्ड-नायक प्रभु भी श्रीमद् वृन्दावन धाम में विराजमान होकर अद्भुत-माधुर्य-सौरस्य के अभिव्यंजक बन जाते हैं; वे ही रासेश्वरी, नित्यनिकुज्जेश्वरी, वृषभानुनन्दिनी, राधारानी के संग विराजमान होकर अनन्तानन्त आनन्द के दायक बन जाते हैं। एक कथा है; कामवन के पास कदम्बखण्डी वन में कोई महात्मा रहा करते थे; वन में घूमते हुए महात्मा की जटाएँ दकिसी झाड़ी में उलझ गईं; महात्मा ने बहुत प्रयास किया सुलझाने का परन्तु ज्यों-ज्यों महात्मा प्रयास करें त्यों-त्यों जटा और उलझती जाय। महात्मा ने कहा, चलो छोड़ो झंझट; जिसने उलझाया है वही आकर सुलझायेगा भी। ऐसा निर्णय कर वे वहीं खड़े रह गए। वहाँ से आते-जाने अनेक यात्रिणें ने महात्मा से जटा छुड़ाने की आज्ञा मांगी परन्तु महात्मा सबको एक ही उत्तर देते, “भाई! तुम अपने रास्ते चलो; हमारी जटा तो वही सुलझाएगा जिसने उलझायी हैं।”

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. कथा का उल्लेख पूर्व-प्रसंगों में हो चुका है।

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गोपी गीत
क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
1. भूमिका 1
2. प्रवेशिका 21
3. गोपी गीत 1 23
4 गोपी गीत 2 63
5. गोपी गीत 3 125
6. गोपी गीत 4 154
7. गोपी गीत 5 185
8. गोपी गीत 6 213
9. गोपी गीत 7 256
10. गोपी गीत 8 271
11. गोपी गीत 9 292
12. गोपी गीत 10 304
13. गोपी गीत 11 319
14. गोपी गीत 12 336
15. गोपी गीत 13 364
16. गोपी गीत 14 389
17. गोपी गीत 15 391
18. गोपी गीत 16 412
19. गोपी गीत 17 454
20. गोपी गीत 18 499
21. गोपी गीत 19 537

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