गोपी गीत -करपात्री महाराज पृ. 382

Prev.png

गोपी गीत -करपात्री महाराज

गोपी गीत 13

‘चेतस्तत् प्रवणं सेवा।’

चित्त की तत्प्रवणता ही वास्विक सेवा है।

‘तत् सिद्ध्यै तनु-वित्तजा।’

भगवदुन्मुखी सेवा अत्यन्त दुरूह है; शरीर एवं वित्त से सेवा करते हुए क्रमशः भगवदभिमुखता प्रस्फुटित होती है। ‘वित्तशाठ्यविवर्जितं’ वित्त-शाठ्य निंद्य है। अपनी अर्थ-शिक्ति से न्यून अथवा अतिरिक्त करना दोनों ही स्थिति-‘वित्त-शाठ्य’ है। यदा-कदा इन महत्-वाक्यों के आवरण में पाखण्ड-रचना भी होती है परन्तु सर्वान्तर्यामी यथार्थ ज्ञान में समर्थ है।

‘किं करिष्यति जनो बहुजल्पः सर्वथा स्वहितमाचरणीयम्।’

बुद्धिमान व्यक्ति अन्य की आलोचना क्यों करे? वह तो स्वहित की ही चिन्ता करता है। शास्त्र-कथन है ‘नात्मार्थं पाचबेदन्नम्’ केवल अपने लिए ही भोजन न बनावे ‘केवलाघो भवति केवलादी’[1] केवल अपने लिए भोजन बनाने वाला अपभक्षी होता है। महाभारत में विधशासी का बड़ा महत्त्व माना गया है। विधिपूर्वक बलि, वैश्वदेव, भूत-यज्ञ, नर-यज्ञ, देव-यज्ञ, ब्रह्म-यज्ञानन्तर भगवान् को भोग लगाकर, अतिथि सत्कार कर भोजन ग्रहण करने वाला ही विधशासी है।

‘यज्ञशिष्टाशिनः सन्तो मुच्यन्ते सर्वकिल्बिषैः।’[2]

अर्थात यज्ञावशिष्ट भोजन करें। प्रत्येक भोग का परिणाम वासना है। वासना ही आशा है ‘आशेरते हृदयेषु इति आशयाः’ जो सूक्ष्म रूप से हृदय में शयन करता है वही वासना किंवा आशय, संस्कार है। नाना प्रकार के सूक्ष्म संस्कार अन्तःकरण में जम जाते हैं; ये अन्तःकरणस्थित विभिन्न संस्कार ही जन्म-मरण-परम्परा का मूल-कारण, बीजस्वरूप हैं।

‘यावतः कुरुते जन्तुः सम्बन्धान् मनसः प्रियान्।
तावन्तोऽस्य निखन्यन्ते हृदये शोकशङ्कवः।।’[3]

अर्थात, प्राणी जितने ही अधिक सांसारिक भोग-विषय किंवा सुहृदादि नातों में प्रेम जोड़ता है उतनी ही अधिक लौह-शलाकाओं को अपने हृदय में ठोकता जाता है।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ऋ0 सं0 10/117/6
  2. श्री0 भ0 गी0 3/13
  3. शार्ङ्र्गधरपद्धति 4/39

संबंधित लेख

गोपी गीत
क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
1. भूमिका 1
2. प्रवेशिका 21
3. गोपी गीत 1 23
4 गोपी गीत 2 63
5. गोपी गीत 3 125
6. गोपी गीत 4 154
7. गोपी गीत 5 185
8. गोपी गीत 6 213
9. गोपी गीत 7 256
10. गोपी गीत 8 271
11. गोपी गीत 9 292
12. गोपी गीत 10 304
13. गोपी गीत 11 319
14. गोपी गीत 12 336
15. गोपी गीत 13 364
16. गोपी गीत 14 389
17. गोपी गीत 15 391
18. गोपी गीत 16 412
19. गोपी गीत 17 454
20. गोपी गीत 18 499
21. गोपी गीत 19 537

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः