गोपी गीत -करपात्री महाराज पृ. 369

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गोपी गीत -करपात्री महाराज

गोपी गीत 13

‘स बाह्याभ्यन्तरो ह्यजः।’[1]

अर्थात, कारणात्मक प्रपञ्च ही अजर, अमर, अनन्त, अखण्ड, स्वप्रकाश ब्रह्म है। तद्भिन्न कोई सत्ता नहीं। कवि कहता है ‘अरबरात निसि दिन मिलबे को, मिले रहत मानो कबहुँ मिले ना।’ यर्थाथ में तद्भिन्न होते हुए भी अत्यन्त उत्कट उत्काण्ठावशात् मिलन-हेतु अनुनय-विनय प्रीत्युत्कर्षजन्य चमत्कृति है।

‘तत्परं पुरुषख्यातेर्गुणवैष्ण्यम्।’[2]

अर्थात दृष्ट और आनुश्रविक, लौकिक एवं परलौकिक सर्वविधि सुख से जो वितृष्णा, निष्कामता है वह वशीकारसंज्ञक वैराग्य है। दृष्टापुश्रविक विषय से वितृष्णा होने के अनन्तर ही सम्यक् श्रवण, मनन, निदिध्यासन, तदनन्तर तत्पुरुष,याति होती है।

‘न द्वेष्टि संप्रवृत्तानि न निवृत्तानि काङ्क्षति।’[3]

अर्थात प्रवृत्त राजसभावप से द्वेष नहीं करता; पुरुष स्वरूप का अपरोक्ष साक्षात्कार हो जाने पर गुणों में भी वितृष्णा हो जाती है। ऐसे वैराग्य-संपन्न-साधुपुरुष सर्व-कामना-विनिर्मिक्त हो जाते हैं। सर्वकाम-विनिर्मुक्त, आप्तकाम, पूर्णकाम, परम-निष्काम आत्माराम को ही भगवान् के मंगलमय चरणारविन्द में अनन्य अनुराग होता है। उरस्थल में भगवत्-पाद-पंकज का विन्यास इस अनन्य अनुराग का ही विन्यास है। ‘पद्मजार्चितं, पद्मजेन ब्रह्मणा अर्चितं’ पद्मज ब्रह्मा के द्वारा अर्चित, भगवान् श्रीकृष्ण के पाद-पंकज कमलयोनि ब्रह्मा द्वारा अर्चित हैं। श्री गोपाङनाएँ कह रही हैं ‘वृद्धैः ब्रह्मादिभिरपि वन्द्यमानचरणः’ जब हमारे श्यामसुन्दर गोचारण के बाद संध्याकाल में घर लौटने भी लगते हैं तो ये ब्रह्मादि वुद्धाजन प्रणाम-दण्डवत् करते हुए विलम्ब का हेतु बन जाते हैं।

ब्रह्माजी कह रहे हैं-

‘को वेत्ति भूमन् भगवन्परात्मन् योगेश्वररोतीर्भवतस्त्रिलोक्याम्।
क्व वा कथं वा कति वा कदेति विस्तारयन् क्रीडसि योगमायाम्।।
तस्मादिदं जगदशेषमसत्स्वरूपं स्वप्नाभमस्तधिषणं पुरुदुःखदुःखम्।
त्वय्येव नित्यसुखबोधतनावनन्ते, मायात उद्यदपि यत् सदिवावभाति।।’[4]

अर्थात, हे प्रभो! मायातः माया के कारण ही आपके नित्यसुखबोध-स्वरूप में ही अविचारतः रमणीय, स्वप्न-तुल्य जगत् उदित होता प्रतीत होता है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. मं0 2/1/2
  2. यागदर्शन 1/16
  3. श्री0 भ0 गी0 14/22
  4. श्रीमद्भागवत 10/14/21-22

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क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
1. भूमिका 1
2. प्रवेशिका 21
3. गोपी गीत 1 23
4 गोपी गीत 2 63
5. गोपी गीत 3 125
6. गोपी गीत 4 154
7. गोपी गीत 5 185
8. गोपी गीत 6 213
9. गोपी गीत 7 256
10. गोपी गीत 8 271
11. गोपी गीत 9 292
12. गोपी गीत 10 304
13. गोपी गीत 11 319
14. गोपी गीत 12 336
15. गोपी गीत 13 364
16. गोपी गीत 14 389
17. गोपी गीत 15 391
18. गोपी गीत 16 412
19. गोपी गीत 17 454
20. गोपी गीत 18 499
21. गोपी गीत 19 537

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