गोपी गीत -करपात्री महाराज पृ. 367

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गोपी गीत -करपात्री महाराज

गोपी गीत 13

‘अनुकूलस्य संकल्पः प्रतिकूलस्य वर्जनम्।’
‘रक्षिष्यतीति विश्वासः गोप्तृत्ववरणं तथा।।’[1][2]

सर्वेश्वर शक्तिमान् प्रभु अवश्य ही रक्षा करेंगे ऐसे दृढ़ विश्वास के साथ कठिन-से-कठिन आपत्ति-विपत्ति में अथवा अत्यन्त आनन्द एवं हर्षोल्लास में देह, इन्द्रिय, मन-बुद्धि, अहंकार की कोई हलचल प्रभु-आज्ञा-विपरीत न करना ही तीव्र भक्तियोग है। जैसे कोई यजमान यज्ञकर्तत्त्वेन ऋत्विजों का वरण करना है, वैसे ही, प्राणी द्वारा संसार-मोचकत्वेन रक्षकत्वेन सर्वाधिष्ठान सर्वान्तर्यामी का वरण कर लिए जाने पर ही अकारण-करुण, करुणा-वरुणालय भक्त-वत्सल प्रभु स्वयं ही अहर्निश उसकी कल्याण-कामना में चिन्तित रहते हैं।

‘का मैं चिन्तौं साइयाँ, मम चिन्तै का होय।
मोरी चिन्ता हरि करै, आगे पीछे जोय।।’[3]

तद्भिन्नत्वेन निर्णय ही वरण है; जैसे घटाकाश का आश्रय महाकाश किंवा तरंग का आश्रय समुद्र ही है, बैसे ही, जीवमात्र का आश्रय सर्वाधिष्ठान परमात्मा ही है। भगवान् स्वयं ही कहते हैं- ‘मामेकं शरणं व्रज’[4] मेरे ही शरण में स्थिर हो जाओ; मुझ एक अनन्त, अखण्ड, अद्वितीय परमात्मा को ही अपना एकमात्र शरण जानो। भक्तराज प्रह्लाद प्रार्थना करते हैं, “हे प्रभो! यदि कुछ देना ही हो तो यही वरदान दो कि हमारे हृदय में कामना का स्फुरण ही न हो।” परन्तु गोपाङनाएँ तो कहती हैं “हे रमण! हम तो योगिनी नहीं, वियोगिनी हैं। हम सकाम हैं। आपके प्रणत-कामदं मंगलमय पादारविन्द को अपने उरोजों पर विन्यस्त करना चाहती हैं। भगवत्-पादार विन्द-दर्शन की कामना परम-निष्कामता का अन्तिम परिणाम है। भुक्ति-मुक्ति-निरपेक्ष महाभागी भक्तज्ञानियों में भी अग्रगण्य है।”

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 76।7
  2. ब्रह्माण्डपुराण 4।42
  3. कबीर
  4. श्रीमद् भ0 गीता 18।66

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गोपी गीत
क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
1. भूमिका 1
2. प्रवेशिका 21
3. गोपी गीत 1 23
4 गोपी गीत 2 63
5. गोपी गीत 3 125
6. गोपी गीत 4 154
7. गोपी गीत 5 185
8. गोपी गीत 6 213
9. गोपी गीत 7 256
10. गोपी गीत 8 271
11. गोपी गीत 9 292
12. गोपी गीत 10 304
13. गोपी गीत 11 319
14. गोपी गीत 12 336
15. गोपी गीत 13 364
16. गोपी गीत 14 389
17. गोपी गीत 15 391
18. गोपी गीत 16 412
19. गोपी गीत 17 454
20. गोपी गीत 18 499
21. गोपी गीत 19 537

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