गोपी गीत -करपात्री महाराज पृ. 366

Prev.png

गोपी गीत -करपात्री महाराज

गोपी गीत 13

इस प्रकार का प्रणाम ही उत्कृष्ट प्रणाम है। आप्तकाम, पूर्णकाम, परम निष्काम भगवान् भी भाव के भूखे हैं। यह भाव-भीना एक प्रणाम भी मोक्षप्रद है-

‘एकोऽपि कृष्णस्य कृतः प्रणामो दशाश्वमेधावभृथेन तुल्यः।
दशाश्वमेधी पुनरेति जन्म कृष्णप्रणामि न पुनर्भवाय।।[1]

प्रणत-जन भी दो प्रकार के होते हैं; एक सकाम, दूसरे निष्काम। भगवान् सत्य-संकल्प हैं, सर्वकामप्रदाता हैं। यदि किसी कामनावश भी अन्य के सम्मुख नमन करता ही हो तो वह नमन भी किसी लौकिक प्राणी के प्रति न कर भगवत् चरणारविन्द में ही करना चाहिए। प्राणिमात्र स्वयं ही अपूर्णकाम है; जो स्वयं अपूर्णकाम है, वह अन्य की कामना-पूर्ति क्यों कर सकता है? लौकिक जनों के दान ‘शकायवास्याल्लवणायवास्यात्’ ही होते हैं।

‘अकाम्ः सर्वकामो वा मोक्षकाम उदारधीः।
तीव्रेण भक्तियोगेन यजेत पुरुषं परम्।।’[2]

अर्थात, तीव्र भक्तियोग के द्वारा ही भगवान् सम्पूर्ण कामनाओं की पूर्ति करते हुए मोक्ष भी प्रदान करते हैं।भगवत्-चरणारविन्द प्रणत-कामदं हैं, ‘कामं ददाति इति कामदं, कामं दाति खण्डयति इति कामदं।’

‘श्रुतिस्मृती ममैवाश्रे यस्ते उल्लंघ्य वर्तते।
आज्ञोच्छेदी मम द्रोही मद्भक्तोऽपि न वैष्णवः।।’

अर्थात, श्रुति-स्मृति-लक्षणा प्रभु-आज्ञा का सर्वथा पालन ही तीव्र भक्ति-योग है; आज्ञा का उच्छेदक ही भगवत्-द्रोही है, वह न भक्त है, न वैष्णव।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाभारत, शान्तिपर्व 46।91
  2. श्री0 भा0 2। 3। 10

संबंधित लेख

गोपी गीत
क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
1. भूमिका 1
2. प्रवेशिका 21
3. गोपी गीत 1 23
4 गोपी गीत 2 63
5. गोपी गीत 3 125
6. गोपी गीत 4 154
7. गोपी गीत 5 185
8. गोपी गीत 6 213
9. गोपी गीत 7 256
10. गोपी गीत 8 271
11. गोपी गीत 9 292
12. गोपी गीत 10 304
13. गोपी गीत 11 319
14. गोपी गीत 12 336
15. गोपी गीत 13 364
16. गोपी गीत 14 389
17. गोपी गीत 15 391
18. गोपी गीत 16 412
19. गोपी गीत 17 454
20. गोपी गीत 18 499
21. गोपी गीत 19 537

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः