गोपी गीत -करपात्री महाराज पृ. 343

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गोपी गीत -करपात्री महाराज

गोपी गीत 12

हे सखी! गुरुजनों का आदेश है कि हम श्रीकृष्ण से अपना मन हटा लें परन्तु ये मुक्त एवं सुमनगण भी सदा, सर्वदा श्रीकण्ठ से लिप्त रहते हैं; क्षण-मात्र के लिए भी उनसे विमुख नहीं हो पाते; हे सखी! इतना ही नहीं, अत्यन्त कठोर हृदय व्यक्ति भी विशिष्ट सौभाग्यवशात् एक बार भी श्रीअंग-सायुज्य पर दृष्टिपात कर लेने पर कभी भी उनसे विरक्त नहीं हो पाते तब हम स्मर-वशा स्त्रियों के लिए उनसे विराग की कल्पना भी क्योंकर हो सकती है? अत्यन्त उत्कट उत्कण्ठापूर्ण स्मरण ही स्मर है; इस स्मर के वशीभूत गोपाङनाएँ अत्यन्त खिन्न हो कह रही हैं “हे वीर! आपके अलिमाला-संकुल परागच्छुरित मुखारविन्द के अद्भुत सौन्दर्य के दर्शन से हमारे मन में उत्कट स्मर उद्बुद्ध होता है; आपके इस अद्भुत सौन्दर्य में आसक्ति होती है तथापि आपका सान्निध्य न पाकर हमारा मन अत्यन्त खिन्न हो जाता है।” ‘घनं रजस्वलं’ ‘स्वलं’ अर्थात सुष्ठ, अलं अलङ्कृतम्। गो-धन की रज से सम्यक् प्रकारेण अलंकृत भगवान् श्रीकृष्णचन्द्र का मुखारविन्द; अथवा-सुष्ठु, अलं अत्यर्थ रजः विभ्रत् घन रजः विभ्रत सुष्ठु अलंकृतं मुखारविन्द। भगवत-मुखारविन्द के सौन्दर्य-माधुर्य-सौरस्य पान का महत्त्व वर्णनातीत है।

ब्रह्माजी कहते हैं-

“एषां तु भाग्यमहिमाच्युत तावदास्ता-
मेकादशैव हि वयं बत भूरिभागाः।
एतद्धृषीकचषकैरसकृत् पिबामः
शर्वादयो ङ्घ्रयु दजमध्वमृतासवं ते।”[1]

अर्थात, हे अच्युत! इन ब्रजवासियों के सौभाग्यातिशय की महिमा अत्यन्त विलक्षण है। मन आदि एकादश इन्द्रियों के अधिष्ठता देवता के रूप में हम इससे सम्बन्धित होकर आपके चरणारविन्द के रस का जो अमृत से अधिक मधुर तथा आसव से अधिक मादक है, पान करते हैं। हम देवता गण तो तत्-तत् इन्द्रिय रूप दर्वि के माध्यम से ही उस रस का पान कर पाते हैं परन्तु ये व्रजवासी वनिताएँ एवं ग्वाल-मण्डल तो अपनी ग्यारहों इन्द्रियों से साक्षात् आपके सौन्दर्य माधुर्यं-सौरस्यामृत का सेवन करती हैं एतावता इन व्रजवासियों का सौभाग्यातिशय तो निश्चय ही वर्णनातीत है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. श्रीमद् भा0, 10/14/33

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गोपी गीत
क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
1. भूमिका 1
2. प्रवेशिका 21
3. गोपी गीत 1 23
4 गोपी गीत 2 63
5. गोपी गीत 3 125
6. गोपी गीत 4 154
7. गोपी गीत 5 185
8. गोपी गीत 6 213
9. गोपी गीत 7 256
10. गोपी गीत 8 271
11. गोपी गीत 9 292
12. गोपी गीत 10 304
13. गोपी गीत 11 319
14. गोपी गीत 12 336
15. गोपी गीत 13 364
16. गोपी गीत 14 389
17. गोपी गीत 15 391
18. गोपी गीत 16 412
19. गोपी गीत 17 454
20. गोपी गीत 18 499
21. गोपी गीत 19 537

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