गोपी गीत -करपात्री महाराज पृ. 341

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गोपी गीत -करपात्री महाराज

गोपी गीत 12

अस्तु, अन्ततोगत्वा निष्कर्ष यह कि भक्ति की गति विधि का लौकिक गति-विधि से सामंजस्य नहीं हो पाता; भक्त सर्वथा विलक्षण है। भगवत्-विरह-दुःखिता गोपाङनाएँ भी भगवद् दर्शन में बाधक दिन के परिक्षय की ही कल्पना करती रहती हैं। इस पद का एक अन्य भाव यह भी है कि गोपाङनाएँ कह रही हैं, हे प्रभो! हे प्रियतम! आपके मुखचन्द्र के सौन्दर्यामृत की प्यासी, बिरहकातरा हम आपके आगमन की प्रतीक्षा करती हुई, निमेषोन्मेष-विवर्जित नयनों से आपका मार्ग निहारती हुई, मार्ग में ही इतस्ततः खड़ी रहती हैं। दिन के परिक्षय पर ही आप पधारते हैं अतः आपके मंगलमय मुखचन्द्र के दर्शन में भी बाधा पड़ती है।

“नीलकुन्तलैः आवृतं वनरुहाननं घनरजस्वलं” ‘वन’ शब्द का अर्थ जल भी होता है। अतः ‘वनरुहाननं’ का अर्थ है जलरुह, सरोज। ‘नीलकुन्तलैः आवृतं’ नील स्निग्ध कुन्तलों में आवृत है। “घनरजस्वलं, घनं गोधनं तस्य रजसा व्याप्तं घनरजस्वल” गोधन के खुरों से उड़ती हुई रज से व्याप्त भगवान् श्रीकृष्णचन्द्र का श्रीमुख कुटिल नील स्निग्ध कुन्तलों से आवृत तथा गोधनों के खुरों से उड़ी हुई रज से व्याप्त दिव्य सरोज है। इस पद की व्याख्या करते हुए श्रीधर स्वामी कहते हैं “अलिकुलमालासंकुल परागच्छुरित पद्यमिव” अर्थात श्रीकृष्ण-चन्द्र का दिव्य मुखारविन्द कुटिल स्निग्ध कुन्तलों से आवृत एवं गरोज-पराग-छुरित हो मकरन्द-पान-लोभी अलिमाला से आवृत, पराग-परिप्लुत, दिव्य-सरोज तुल्य शोभायमान हो रहा है। उपमेय के वर्णन हेतु उपमान अनिवार्य है। उदाहरणतः भगवती, जनक-नन्दिनी जानकी का वर्णन करते हुए तुलसीदास जी कहते हैं-

“सिय सोभा नहिं जाइ बखानी। जगदम्बिका रूप गुन खानी।
उपमा सकल मोहि लघु लागीं। प्राकृत नारि अंग अनुरागीं।।
सिय बरनिअ तेइ उपमा देई। कुकवि कहाइ अजसु लो लेई।
जौं पटतरिंअ तीय सम सीया। जग असि जुबति कहां कमनीया।।
गिरा मुखर तन अरध भवानी। रति अति दुखित अतनु पति जानी।
विष बारुनी बंधु प्रिय जेही। कहिअ रमा सम किमि बैदेही।।
जौ छवि सुधा पयोनिधि होई। परम रूपमय कच्छपु सोई।
सोभा रजुमंदरु सिंगारू। मथै पानि पंकज निज मारू।।
‘एहि बिधि उपजै लच्छि जब, सुन्दरता सुख मूल।
तदपि संकोच समेत कवि, कहहिं सीय सम तूल।।”[1]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. मानस, बाल,247

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गोपी गीत
क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
1. भूमिका 1
2. प्रवेशिका 21
3. गोपी गीत 1 23
4 गोपी गीत 2 63
5. गोपी गीत 3 125
6. गोपी गीत 4 154
7. गोपी गीत 5 185
8. गोपी गीत 6 213
9. गोपी गीत 7 256
10. गोपी गीत 8 271
11. गोपी गीत 9 292
12. गोपी गीत 10 304
13. गोपी गीत 11 319
14. गोपी गीत 12 336
15. गोपी गीत 13 364
16. गोपी गीत 14 389
17. गोपी गीत 15 391
18. गोपी गीत 16 412
19. गोपी गीत 17 454
20. गोपी गीत 18 499
21. गोपी गीत 19 537

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