गोपी गीत -करपात्री महाराज पृ. 34

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गोपी गीत -करपात्री महाराज

गोपी गीत 1

गोलोक-धाम एवं वैकुण्ठधाम में भगवान की सर्वेश्वरता प्रत्यक्ष प्रख्यात रहती है। इन धामों में अनन्त-ब्रह्माण्ड की महाधिष्ठात्री ऐश्वर्य-शक्ति स्वयं ही पूर्णतः व्यक्त रहती हैं; ब्रह्म-रुद्र इन्द्रादि देवगण भी करबद्ध हो श्रीमन्नारायण का सतत संस्तवन करते रहते हैं। साकेतधाम, द्वारकाधाम एवं मथुराधाम में ऐश्वर्य-शक्ति के साथ ही साथ माधुर्य-शक्ति का भी सम्मिश्रण होता है। यही कारण है कि इन धामों में भगवान के शंख, चक्र, गदा एवं पद्मधारी चतुर्भुज स्वरूप का ही दर्शन होता है और समय-समय पर अनेक अलौकिक ऐश्वर्यपूर्ण कार्यों का भी अनुभव होता है। व्रजधाम में ऐश्वर्यभाव का सर्वथा तिरोधान हो जाता है अतः ब्रजधाम में ही माधुर्य-भाव की पूर्णाभिव्यक्ति संभव होती है। भक्ति-मार्गानुयायी के लिए सर्वेश्वर, सर्वशक्तिमान् प्रभु का माधुर्य-पूर्ण स्वरूप ही सर्वातिशायी है।

सनातन गोस्वामी ने एक अत्यंत सुन्दर ग्रन्थ की रचना की है। यह ग्रन्थ श्लोकात्मक छन्दोबद्ध है। इस ग्रन्थ में एक गोपालसखा की कथा है। भगवान् श्यामसुन्दर श्रीकृष्ण का गोपाल नामक एक सखा था। निस्संकोच निर्भर अनुराग का, शुद्ध स्नेह का प्रादुर्भाव कहाँ सम्भव है यह जानने के लिए उत्सुकतावशात् सखा गोपाल वैकुण्ठधाम, गोलोकधाम आदि लोक-लोकान्तरों में गया। वैकुण्ठधाम में वैकुण्ठनाथ भगवान् का अनन्त ऐश्वर्य, महामहिम वैभव, अतुलित प्रताप अनन्त यश छाया हुआ था; रुद्र-ब्रह्मादि देवगण तथा सनकादिक-शुकादिक महर्षिगण उनका संस्तवन कर रहे थे; अनन्त ब्रह्माण्ड की अनन्य-अधिष्ठात्री, भगवती, महालक्ष्मी भी श्रीमन्नारायण की आराधना में निरन्तर संलग्न थीं; जय-विजय, नन्द, सुनन्द आदि पार्षद भी सावधान होकर भगवान् की सेवा में संलग्न थे। इस अतुलित ऐश्वर्य से चकित हो सखा गोपाल ने वहाँ के अन्तरंग व्यक्त्यिों के सम्मुख अपनी जिज्ञासा रखी। वे सब भबवान् श्रीमन्नारायण की अनन्त महिमा एवं अनन्त ऐश्वर्य की स्तुति करते हुए भी प्रेमोत्कर्ष के प्रसंग में व्रजधाम को ही प्रशंसा करने लगते। वे लोग अपने ऐश्वर्याभिभूत हृदयों के कारण वैकुण्ठधाम अथवा गोलोकवासी भगवत् चरणारविन्दों के संस्पर्श की भी कल्पना नहीं कर सकते थे। उद्धरण है-

स्वयं त्वसाम्यातिशयस्त्र्यधीशः स्वाराज्यलक्ष्म्याप्तसमस्तकामः।
बलिम् हरद्भिश्चिरलोकपालैः किरीटकोट्येडितपादपीठः।।[1]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. श्रीमद्भा. 3।2।21

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गोपी गीत
क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
1. भूमिका 1
2. प्रवेशिका 21
3. गोपी गीत 1 23
4 गोपी गीत 2 63
5. गोपी गीत 3 125
6. गोपी गीत 4 154
7. गोपी गीत 5 185
8. गोपी गीत 6 213
9. गोपी गीत 7 256
10. गोपी गीत 8 271
11. गोपी गीत 9 292
12. गोपी गीत 10 304
13. गोपी गीत 11 319
14. गोपी गीत 12 336
15. गोपी गीत 13 364
16. गोपी गीत 14 389
17. गोपी गीत 15 391
18. गोपी गीत 16 412
19. गोपी गीत 17 454
20. गोपी गीत 18 499
21. गोपी गीत 19 537

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