गोपी गीत -करपात्री महाराजगोपी गीत 11ज्ञानी उद्धव भी प्रार्थना करते हैं- ‘आसामहो चरणरेणुजुषामहं स्यां, अर्थात, दूर्वा लता द्रुम पाषाणादि किसी भी रूप में मुझको वृन्दावन में स्थान प्राप्त हो ताकि दुस्त्यज आर्य-पथ को त्यागकर मुकुन्द की शरण जाने वाली व्रजाङनाओं का पद-रज- संस्पर्श मुझको प्राप्त हो सके। ब्रह्मा भी कहते हैं- तदस्तु मे नाथ स भूरिभागो अर्थात, हे प्रभो आपका भक्त बनकर, किसी भी रूप में रहकर आपके चरणारविन्दों की सेवा कर सकूँ और आपके पद-पद्य-रज को पा सकूँ। इतना ही नहीं- |