गोपी गीत -करपात्री महाराज पृ. 317

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गोपी गीत -करपात्री महाराज

गोपी गीत 10

कृष्ण-सखा उद्धव स्वयं वृहस्पति के शिष्य थे, भगवान् कहते हैं- ‘नोद्धवोण्वपिमन्यूनः उद्धव मुझसे अणुमात्र भी न्यून नहीं है; ऐसे ज्ञानीशिरोमणि नीति-निपुण उद्धव गोपांगनाओं के वियोग से विहल भगवान् श्रीकृष्ण को संतप्त देखकर हँसा करते थे; उद्धव कहते हैं राजनीति में अष्टादश, व्यसन त्याज्य हैं, हे कृष्ण! इन वनचरी गोपालियों के प्रति तुम्हारा यह व्यसन भी त्याज्य है। अस्तु, भगवान ने अपने सखा को अपना दूत बनाकर वृन्दावन धाम भेजा; वृन्दावन-धाम पहुँचकर उद्धव को वहाँ की जस का संस्पर्श प्राप्त हुआ; वहाँ के गुल्म, लता, तृण एवं गो-बछ़ड़ों का तथा नन्दराय एवं यशोदारानी का, गोपांगनाओं का तथा राधारानी का दर्शन हुआ। उन्होंने उन सबके लोकोत्तर अनुराग का अनुभव किया। उद्धव ने गोपांगनाओं को ध्यान-ज्ञान समझाने का भी प्रयास किया; अन्ततोगत्वा श्रीकृष्ण के प्रति गोपांगनाओं के लोकोत्तर प्रेम के अनुभव से उद्धव के ज्ञानाहंकार का मार्जन हुआ एवं वे भगवान् श्रीकृष्णचन्द्र के परम भक्त होकर ही द्वारिका लौटे।

जन्म-जन्मान्तरों के पुण्य-पुन्जवशात् ही देवर्षि नारद का सत्संग प्राप्त हो सकता है। भक्त प्रह्लाद ने गर्भावस्था में ही नारदजी के वचनामृत सुने, फलतः परम भक्त होकर दिव्यगति को प्राप्त हुए। तैलधारावत् अविच्छिन्न, गम्भीर, ध्यान-परम्परान्तर्गत देवर्षि नारद के दुर्लभ दर्शन भी विघ्न स्वरूप ही भासित होने लगते हैं। तात्पर्य कि सम्पूर्ण सुध-बुध भूल कर किसी एक में तन्मय हो जाना ही आसक्ति है। उदाहरणतः, अनादि-काल से लाख-लाख पतंगे स्वभावतः ही दीपशिखा पर मर मिटे; इन मरणोन्मुख पतंगो को दीपशिखा से कदापि हटाया नहीं जा सकता; ये सदा-सर्वदा ही दीपशिखा पर अपने प्राणों का विसर्जन करते रहे हैं और करते रहेंगे। आसक्ति निरोध का यही सर्वोत्कृष्ट रूप है। अपने प्राणधन प्रियतम श्रीकृष्ण के प्रेम में पगी इन गोपांगनाओं को भी इतर सम्पूर्ण जगत् का विस्मरण हो गया।

‘प्रहसित प्रिय प्रेमवीक्षमण्’ हे प्रिय! तुम्हारा प्रहसित ही उद्वेजक है। ‘उद्भट हसित’ ही प्रहसित है। गोपांगनाएँ कह रही हैं, हे प्रिय! हम आपके विप्रयोगजन्य तीव्रताप से सन्तप्त हैं परन्तु आप अन्यत्र हास-विलास कर रहे हैं अतः आपका यह हास हमको क्षुब्ध ही करता है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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गोपी गीत
क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
1. भूमिका 1
2. प्रवेशिका 21
3. गोपी गीत 1 23
4 गोपी गीत 2 63
5. गोपी गीत 3 125
6. गोपी गीत 4 154
7. गोपी गीत 5 185
8. गोपी गीत 6 213
9. गोपी गीत 7 256
10. गोपी गीत 8 271
11. गोपी गीत 9 292
12. गोपी गीत 10 304
13. गोपी गीत 11 319
14. गोपी गीत 12 336
15. गोपी गीत 13 364
16. गोपी गीत 14 389
17. गोपी गीत 15 391
18. गोपी गीत 16 412
19. गोपी गीत 17 454
20. गोपी गीत 18 499
21. गोपी गीत 19 537

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