गोपी गीत -करपात्री महाराज पृ. 251

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गोपी गीत -करपात्री महाराज

गोपी गीत 6

भगवती का प्राकृत्यंश जड़ रूप ही है परन्तु अधिष्ठान रूप शुद्ध चिद्-स्वरूप है। ‘या देवी सर्वभूतेषु चितिरूपेण संस्थिता।’ अनन्त चित्, स्व प्रकाश चैतन्य, अखण्ड बोध यही भगवती का वास्तविक स्वरूप है। अस्तु, प्रकृति के अनुग्रह से ही विभिन्न भोगों को भोग कर अपवर्ग, स्वर्ग का सम्पादन कर ‘भुक्तासंपादिताः भोगाः अपवर्गश्च ययासा भुक्तभोगाताम् अजा अन्यो जहाति।’ कोई जीव उसको छोड़ देता है। रूप-विन्यास-दृष्टया प्रकृति को ही अजा कहा गया है। भक्त प्रार्थना करता है ‘हे अजित! इस अजा को मारें।’ परन्तु भगवान् अजा को मारते नहीं। ‘गुणिनी अजा किमिति हन्तव्या।’ क्योंकि अजा त्रिगुणवती हैं।

‘दोष गृभीत गुणां दोषाय जीवानां स्वरूपभूतस्य आनन्दस्य आवरणाय गृहीता गुणा यया सा।’ भक्त कहता है, हे प्रभो! जैसे स्वैरिणी दूसरों को छलने के लिए ही विविध अंगराग एवं वस्त्रालंकार धारण करती है, सुन्दर आभा, प्रभा शोभा प्रदर्शित करती है वैसे ही, यह अजा भी जीव के आनन्दादि स्वरूप को आच्छादित करने के लिए ही सत्त्व, रज, तम तीन गुणों को धारण करती है। जो इस अजा प्रकृति के माया-जाल में फँस जाते हैं उनका स्वरूप-भूत आनन्द एवं चैतन्य प्रावृत्त हो जाता है। प्रकृति के माया-जाल में फँसा हुआ जीव स्वयं परमानन्द चैतन्य स्वरूप होते हुए माया-मोहित होकर भ्रमवश आनन्द एवं ज्ञान का भिखारी बना हुआ भवाटवी में इतस्ततः भटकता रहता है। अजा वस्तुतः गुणवती न होते हुए भी जीव के आनन्द एवं चैतन्य स्वरूप को तिरस्कृत करने के हेतु ही सत रज तम त्रिगुणात्मिका बनी हुई है। हे प्रभो! इसको मारें। आप अजित हैं। जैसे तिमिस्त्रा रात्रि सूर्य के समक्ष कदापि स्थिर नहीं रह पाती वैसे ही परमानन्द, आनन्दघन, स्वप्रकाश परब्रह्म प्रभु के समक्ष ‘तत्त्वान्यत्वाभ्यां निर्वक्तु मनर्हा’ अविचारित रमणीया माया भी कदापि सम्मुख नहीं हो पाती। हे प्रभो! आप परम दयालु हैं; अतः इस अजा का हनन कर हमारी आर्ति का हनन करें। तब भी सर्वेश्वर प्रभु अजा का हनन नहीं करते दैवी ह्येषा गुणमयी मम माया दुरत्यया। देवस्य स्वप्रकाशस्य परब्रह्मणो मम इयं दैवी।’[1] यह दैवी माया त्रिगुणात्मिका है; तीन सूत्रों में बँटी हुई रस्सी की तरह ही सत रज तम रूप तीन सूत्रों में बँटी यह माया, अजा दुरत्यया है, इसका अतिक्रमण सम्भव नहीं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. श्री. भ. गी. 7/14

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गोपी गीत
क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
1. भूमिका 1
2. प्रवेशिका 21
3. गोपी गीत 1 23
4 गोपी गीत 2 63
5. गोपी गीत 3 125
6. गोपी गीत 4 154
7. गोपी गीत 5 185
8. गोपी गीत 6 213
9. गोपी गीत 7 256
10. गोपी गीत 8 271
11. गोपी गीत 9 292
12. गोपी गीत 10 304
13. गोपी गीत 11 319
14. गोपी गीत 12 336
15. गोपी गीत 13 364
16. गोपी गीत 14 389
17. गोपी गीत 15 391
18. गोपी गीत 16 412
19. गोपी गीत 17 454
20. गोपी गीत 18 499
21. गोपी गीत 19 537

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