गोपी गीत -करपात्री महाराजगोपी गीत 4वात्सल्यमयी, करुणामयी, कल्याणी अम्बा यशोदा बालक को अंक में भरकर कहती ‘वत्स! भगवान् विष्णु की आराधना के फलस्वरूप हमने तुझे प्राप्त किया है। भगवान् विष्णु ‘अलसीपुष्पसंकाशं पीत-वासमच्युतं। ‘श्रीमन्नारायण-विष्णु पीत वस्त्र धारण करने वाले तथा अलसी पुष्प की तरह नील हैं। यही कारण है कि तेरा रंग श्याम है। तो तू मुझे सर्वाधिक प्यारा है।’ बालकृष्ण प्रसन्नता से झूम उठते। बाल-सूर्य-रश्मि-संश्लिष्ट प्रफुल्लित अलसी पुष्प की मनोहर-भव्य-श्यामलता अत्यन्त विचित्र होती है; यह वर्णनतीत सौन्दर्य अवश्य ही अनुभाव्य है। ‘यादवानां कुले उदेयिवान् न गोपांगनाकुले’ आप गोप-कुल में नहीं अपितु यादवों के कुल में उत्पन्न हैं एतावता आप निष्करुण हैं; आपकी इस निष्करुणता के कारण ही ऐसा प्रतीत होता है कि ‘विश्वगुप्तये भवान् न उदेयिवान्’ आपका आविर्भाव विश्व-रक्षा-हेतु नहीं हुआ है किन्तु ‘अविश्वगुप्तये विश्वस्य गुप्तिर्विश्वगुप्तिः, न विश्वगुप्तिः अविश्वगुप्तिस्तस्यै’ विश्व-संहार-हेतु ही हुआ है। यही कारण है कि आपके विप्रयेाजन्य तीव्र-ताप से दग्ध हो हम आपकी अनुरागिणी-जन मरणोन्मुखी हो रही हैं फिर भी आप प्रत्यक्ष नहीं हो रहे हैं, दर्शन नहीं दे रहे हैं। आपके इस निष्ठुर व्यवहार से संसार भर में जितने भी आपके भक्त हैं वे सब भी दशमी-दशा (मृत्यु) को प्राप्त होंगे और सम्पूर्ण विश्व ही निस्सार हो जायगा, ध्वंस हो जायगा। हे सखे! आप गोपिका, यशोदारानी के पुत्र दामोदर भी नहीं हो सकते। दामोदर अर्थात् दाम, रज्जु है जिसके उदर में। जिसका अत्यन्त बलशाली हिरण्याक्ष एवं हिरण्यकशिपु जैसे भयंकर दानव भी नहीं बाँध सके, जो स्वयं ही अनन्तकोटि ब्रह्माण्डनायक अखिलेश्वर प्रभु हैं वही यशोदारानी के स्नेह वशीभूत हो उनके उलूखल में बँध गया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ महाभारत, शान्ति. 47। 90; गरुड़ 1। 4। 5